Dishaheen (दिशाहीन)

By Suryabala (सूर्यबाला)

Dishaheen (दिशाहीन)

By Suryabala (सूर्यबाला)

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Specifications

Genre

Novels And Short Stories

Print Length

144 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2020

ISBN

818826685X, 9789387980679

Weight

290 Gram

Description

सर ‘करेक्ट’ बोलकर होंठों के कोनों में हलके से मुसकराते हुए ब्लैकबोर्ड की ओर मुड़ गए, लेकिन बोलने के साथ ही जबरदस्ती दबाई जानेवाली हँसी का धीमा फौवारा पीछे से छूटा था| यह मेरे द्वारा अंग्रेजी शब्दों के कस्बाई उच्चारण पर था| दबे शब्दों में मेरे उच्चारण की नकल की जा रही थी-जैसे नॉट को नाट, स्केल को इस्केल आदि| क्लास से उठकर जाते हुए एक लड़के से दूसरे को कहते सुना, ‘चील-गोजा|’ मैं एकाएक तिलमिलाता हुआ उस ग्रुप के पास पहुँच गया-‘आप लोग ‘चीलगोजा’ किसे कह रहे थे?’ ग्रुप थोड़ा चौंका, फिर एक लड़का ढिठाई से बोला-चीलगोजा, वो-वो एक ड्राइफ्रूट होता न-उसी को|’ ‘चुप रहिए!’ मेरा सारा चेहरा अपमान से दहक रहा था-‘मैं आप लोगों की तरह शान-शौकतवाला अंग्रेज नहीं, गँवार हूँ पर इतना पागल नहीं हूँ|’ ‘पागल? कौन आपको पागल कहता है? एक लड़का पुचकारता हुआ पास आ गया-आप तो खाली-पीली में गुस्सा करता-चीलगोजा सच्ची में ड्राइफ्रूट, ओ-क्या कहते हैं मदर टंग में बोल न|’ उसने दूसरे लड़कों को धकियाया| ‘जानता हूँ|’ मैं बात काटकर बोला, ‘इतनी अंग्रेजी मैं भी जानता हूँ-यह भी जानता हूँ कि अपने देश की हिंदी या कोई भी भाषा आप गलत बोलेंगे तो न आपको शर्म आएगी, न सुननेवाले को, लेकिन अगर कोई अंग्रेजी गलत बोल दे तो आप सरेआम मजाक उड़ाने से नहीं चूकते| आप जैसे भारतीय...|’ -इसी संकलन से बाजार और व्यावसायिकता के सारे दबावों से मुक्त होकर एकनिष्ठ भाव से कलम चलानेवाली सूर्यबाला की ‘दिशाहीन’ कहानी की प्रस्तुत पंक्तियाँ आधुनिक शिक्षा व्यवस्था की विडंबना पर बहुत सारे मार्मिक सवाल उठाती हैं|


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