$13.53
Genre
Print Length
224 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2016
ISBN
9788177212334
Weight
390 Gram
अपनी सगी सास नहीं है| ननद नहीं, देवरानी-जेठानी कोई नहीं है| केले की फली जैसा अकेला किसनिया जनमा था, फिर कोख ही नहीं भरी| अब कहीं जाके किसनिया की गृहस्थी केले की फली जैसी उघड़ती जा रही है| चार बरस तक अकेला किसनिया था और अब तीन जनों का कुटुंब है| तीन-चार महीने बाद एक और बढ़ जाएगा और फिर बरसों तक यही क्रम|...यही सोचते-सोचते आनंदी को अपनी गृहस्थी में सास-ननद, देवरानी-जिठानी का अभाव खलने लगता है| परतिमा ककिया सास है, कभी-कभार कुछ कह-सुन जाती है| उसी के कहे को आँवले के दाने की तरह अपने अंदर लुढ़काती रहती है आनंदी| सपने में भी...और परतिमा सासू कहती हैं कि गर्भिणी को जुड़े हुए नाग नहीं देखने चाहिए| पाप लगता है!
-इसी संग्रह से
सुप्रसिद्ध कहानीकार शैलेश मटियानी अपने विपन्न और उपेक्षित पात्रों के प्रति सहानुभूति एवं गहरी करुणा और पक्षधरता रखते हैं| इसीलिए ये कहानियाँ हमें पीडि़तों की तरफदारी के लिए बाध्य करती हैं| कुत्सित-स्वरूपों के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश से भरी पठनीय एवं शिक्षाप्रद कहानियाँ|
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