Bharat : Ek Aahat Sabhyata (भारत : एक आहत सभ्यता)

By V. S. Naipaul (वी. एस. नायपॉल)

Bharat : Ek Aahat Sabhyata (भारत : एक आहत सभ्यता)

By V. S. Naipaul (वी. एस. नायपॉल)

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Specifications

Print Length

104 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2014

ISBN

8173155135

Weight

250 Gram

Description

कहा जाता है कि सत्रह वर्ष के एक बालक के नेतृत्व में अरबों ने सिंध के भारतीय राज्य को रौंदा था| सिंध आज भारत का हिस्सा नहीं है, उस अरब आक्रमण के बाद से भारत सिमट गया है| (अन्य) कोई भी सभ्यता ऐसी नहीं, जिसने बाहरी दुनिया से निपटने के लिए इतनी कम तैयारी रखी हो; कोई अन्य देश इतनी आसानी से हमले और लूटपाट का शिकार नहीं हुआ, (शायद ही) ऐसा कोई और देश होगा, जिसने अपनी बरबादियों से इतना कम (सबक) सीखा होगा| भारत मेरे लिए एक जटिल देश है| यह मेरा गृह देश नहीं है और मेरा घर हो भी नहीं सकता, लेकिन फिर भी न मैं इसे खारिज कर सकता हूँ, न इसके प्रति उदासीन हो सकता हूँ| मैं इसके दर्शनीय स्थलों का पर्यटक मात्र बनकर नहीं रह सकता| मैं एक साथ इसके बहुत निकट और बहुत दूर भी हूँ| लगभग सौ साल पहले मेरे पूर्वज यहाँ के गंगा के मैदान से पलायन कर गए थे और दुनिया के उस पार त्रिनिडाड में उन्होंने अन्य लोगों के साथ जो भारतीय समाज बनाया था, और जिसमें मैं बड़ा हुआ था, वह समाज उस भारतीय समाज से कहीं अधिक आपस में घुला-मिला था, जिससे सन् 1883 में दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी का साक्षात्कार हुआ था| सौ वर्षों का समय मुझे अनेक भारतीय धार्मिक रुझानों से विलग करने के लिए पर्याप्‍त था और इन रुझानों को समझे बिना भारत की व्यथा को समझ पाना असंभव था, आज भी असंभव है| भारत की विचित्रता से तालमेल बिठाने, यह जानने में कि वह क्या है जो मुझे इस देश से अलग करता है और यह समझने में कि नए विश्‍व के एक छोटे और दूरस्थ समुदाय के मेरे जैसे व्यक्‍ति के भारतीय रुझान उन लोगों के रुझानों से कितने अलग हैं, जिनके लिए भारत आज भी अपनी समग्रता में है, काफी समय लगा| -इसी पुस्तक से


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