Kushti Tu Badbhagini (कुर्सी तू बदभगिनी)

By Vijay Kumar (विजय कुमार)

Kushti Tu Badbhagini (कुर्सी तू बदभगिनी)

By Vijay Kumar (विजय कुमार)

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Specifications

Print Length

136 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2011

ISBN

9788177211269

Weight

290 Gram

Description

अब मैं कुरसी पर बैठता तो हूँ; पर रात में मुझे अजीब से स्वप्न आते हैं| कभी लगता है, कोई कुरसी खींच रहा है; कभी कोई उसे उलटता दिखाई देता है| कभी कुरसी सीधी तो मैं उलटा दिखाई देता हूँ| मैं परेशान हूँ; पर कुरसी आराम से है| जैसे लोग मरते हैं; पर शमशान सदा जीवित रहता है| ऐसे ही नेता आते-जाते हैं; पर कुरसी सदा सुहागन ही रहती है| कुरसी की महिमा अपरंपार है| यह सताती, तरसाती और तड़पाती है; यह खून सुखाती और दिल जलाती है; यह झूठे सपने दिखाकर भरमाती है; यह नचाती, हँसाती और रुलाती है; यह आते या जाते समय मुँह चिढ़ाती और खिलखिलाती है| यह वह मिठाई है, जिसे खाने और न खाने वाले दोनों परेशान हैं| जिसे मिली, वह इसे बचाने में और जिसे नहीं मिली, वह इसे पाने की जुगत में लगा है| धरती सूर्य की परिक्रमा कर रही है और धरती का आदमी कुरसी की| 21वीं सदी की आन, बान और शान यह कुरसी ही है| कुरसी तू धन्य है| तेरी जय हो, विजय हो|


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