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Specifications

Print Length

208 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2011

ISBN

8173152551

Weight

350 Gram

Description

इंद्रसेन : शकों को पराजित करके क्या हम उनके बाल-बच्चों का वध करेंगे? कभी नहीं, राजन्| यदि वे हमारी संस्कृति के होकर हमारे देश में रहेंगे तो उनकी उसी प्रकार रक्षा की जाएगी जैसी आर्य जगे की की जाती है| रामचंद्र : आप यह कहते हैं और वे लोग हमारे देश के रक्त से दिन-रात, प्रत्येक क्षण तर्पण करते चले जा रहे हैं! इंद्रसेन : इसका निवारण करने के लिए विष्णु के एक हाथ में गदा है| दुर्वृत्तियों का दमन करने के लिए दूसरे हाथ में चक्र है| स्पष्ट स्वर में नीति और शौर्य के मेल की घोषणा करके जन को जगाने के लिए हाथ में शंख है और जीवन को पुरस्कार तथा वरदान देने के लिए चौथे हाथ में कमल है| कुछ लोग शंख, चक्र और गदा को त्यागकर केवल कमल की पूजा में लीन हो जाते हैं| यह उनकी भूल है| भक्ति और पुरुषार्थ का, हंस और मयूर का मेल होना चाहिए| रामचंद्र : मैं समझा नहीं, देव? इंद्रसेन : हंस बुद्धि-विवेक, प्रज्ञा, मेधा, भक्ति और संस्कृति का प्रतीक है; मयूर तेज, बल और पराक्रम का| दोनों का समन्वय ही आर्य संस्कृति है| जीवन और परलोक-दोनों की प्राप्ति का एकमात्र साधन| रामचंद्र : कापालिकों ने प्रण किया है कि वे शकों के मुंडों की माला पहिनेंगे और उनके शरीर की राख को अपने तन में मलेंगे| क्या यह अनुचित है? इंद्रसेन : इससे बढ़कर अनुचित और क्या होगा! जब शकों की पराजय हो जाएगी और संस्कृति फिर अपने प्रबल मनोहर रूप में व्याप्त होने को होगी, तब ये कापालिक किसकी मुंडमाला पहिनेंगे? किसकी भस्म शरीर पर लपेटेंगे?


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