Lautate Shabda Ka Vadh (लौटते शब्द का वध)

By Y. K. Singh (वाय. के. सिंग)

Lautate Shabda Ka Vadh (लौटते शब्द का वध)

By Y. K. Singh (वाय. के. सिंग)

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Specifications

Print Length

128 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2009

ISBN

8188266779

Weight

275 Gram

Description

प्रस्तुत काव्य संग्रह आदमी की जिजीविषा का अप्रतिम दस्तावेज है| यह जिजीविषा आत्मबल और पुरुषार्थ से अर्जित है| आत्मसम्मान को आगे रख किए गए परिश्रम की गाढ़ी कमाई है यह| आत्मसम्मान की पतली लकीर कभी-कभी अहम की गाढ़ी लकीर में गड्डमड्ड होती है, कवि इसके खतरों से खूब वाकिफ है| वह लैंडमाइन, बूबीट्रैप्स से बचता-बचाता अपने रास्ते पर बढ़ता है| उसकी मान्यता है कि कभी कुछ पूरी तरह समाप्‍त नहीं होता है| एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुलता है या कहीं कोई खिड़की जरूर खुलती है| वह चाहता है कि नया जो कुछ खुले, वह पुराना बंद होने की छाती-पीट काररवाई में दृष्‍टि से ओझल न रहे| उसके यहाँ अखाड़े में गिरनेवाले को हारा हुआ नहीं बल्कि लड़ा हुआ कहा जाता है| मिट्टी कभी भी पूरी पीठ में एकसार नहीं पाई जाती है, अत: संपूर्ण हार स्वीकार्य नहीं है| इसे वह जीवन की एक अनिवार्य शर्त मानकर चलता है| गीता का ‘न दैन्यं न पलायनम्’ यहाँ गंभीर उघाड़ के साथ धरातल पर जीवंत है| यही नि:सृत ऊर्जा उसकी जीवनी-शक्‍ति है, प्राणवायु है| किसी भी साधारण जन के भीतर यह उसी तरह है, जैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि मोमबत्ती की लपलपाती लौ के भीतर एक बिंदु ऐसा होता है जहाँ शीतलता है, ज्वलनशीलता का जोशीला आग्रह नहीं है| कवि के यहाँ यही वह ठीहा है जहाँ मनुष्य की जिजीविषा टिकी है| भीतरी शीतलता से बाहरी मोर्चों की रोजमर्रा झड़पों के बीच कविता अपनी रवानी पर रहती है, व्यष्‍टि से समष्‍टि की ओर जाती हुई|


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