$4.21
Print Length
112 pages
Language
Hindi
Publisher
Rajpal and sons
Publication date
1 January 2019
ISBN
9789389373004
Weight
192 Gram
गीताश्री उन चुनिंदा लेखिकाओं में हैं जिनकी कहानियों का अपना ‘लोकेल’, अपनी बोली-ठोली है जो स्थानीय जीवन संदर्भों में गहरे रचा-बसा है। उनकी अपनी सघन भाषा भी है जिसमें बोली के मुहावरे बहुत प्रमुखता से दिखाई देते हैं। लिट्टी-चोखा और अन्य कहानियाँ कहानी-संग्रह की दस कहानियाँ इसका बेहतरीन उदाहरण हैं। संग्रह की कहानियों में तिरहुत-मिथिला के धूल पगे गाँवों-क़स्बों की भूली-बिसरी कहानियाँ कभी वहाँ की समृद्ध सामाजिकता की याद दिला देती हैं तो कभी विस्थापन की गहरी टीस से भर देती हैं। उनकी कहानियों के परिवेश ही नहीं किरदार भी याद रह जाने वाले हैं। राजा बाबू, पमपम बाबू जैसे कलाकार हैं जिनको कभी पहचान नहीं मिल पाई, नीलू कुमारी है जिसको दिल्ली में नौकरी मिल जाती है और क़स्बे में प्रेमी पीछे छूट जाता है। यह गीताश्री की कहानियों का नया मुक़ाम है जिनमें अपने अपनों से छूट रहे हैं, भास-आभास की दूरी मिटती दिखाई दे रही है, जो जहाँ है वह वहीं नहीं है। सब भ्रम है, यथार्थ कुछ भी नहीं। लिट्टी-चोखा और अन्य कहानियाँ आते हुए दौर के लिए बीते हुए दौर के अल्बम की तरह है, मानो लेखिका जिसे झाड़-पोंछकर पढ़ने वालों के लिए सहेज रही हो। गीताश्री की कहानियों में ग्रामीण-कस्बाई जीवन के सघन समाज से लेकर महानगरीय जीवन की अकेली लड़ाइयाँ तक मौजूद हैं।
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