मध्यकाल में भक्ति-काव्य के अंकुर देश के विभिन्न प्रान्तों में फूटे और अपने अलग-अलग ढंग से फूले-फले। बाउल कविता और संगीत का जन्म अविभाजित बंगाल में हुआ जिसमें बौद्ध, वैष्णव, नाथ, सूफ़ी आदि परम्पराओं का मिश्रण मिलता है। इसके सबसे प्रमुख भक्त-कवि थे - लालन शाह फ़क़ीर (1774-1890 ई.)। लालन शाह फ़क़ीर के गीतों में संत-भक्त परम्परा के चंडीदास, चैतन्य, कबीर, रैदास की स्मृति और संस्कार - सभी का समावेश है। लालन फ़क़ीर जाति और धर्म के विरोधी थे जिस कारण शास्त्रज्ञ हिन्दू उन्हें पतित मानते और कट्टर मुसलकान बेसरा और काफ़िर कहकर अपमानित करते। लेकिन इसके बावजूद उस समय के हिन्दू और मुसलमान आमजन ने इन्हें अपनाया और ग्रामीण बांग्ला समाज में उनकी स्वीकार्यता का बहुत विस्तार हुआ। आज भी वे पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की संस्कृति और साहित्य की पहचान में बहुत महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। इस पुस्तक का चयन व संपादन माधव हाड़ा ने किया है, जिनकी ख्याति भक्तिकाल के मर्मज्ञ के रूप में है। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष माधव हाड़ा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फ़ैलो रहे हैं। संप्रति वे साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की साधारण सभा और हिन्दी परामर्श मंडल के सदस्य हैं।
Laalan Shah Fakir - Kaljayi Kavi Aur Unka Kavya (लालन शाह फकीर - कालजयी कवि और उनका काव्य)
Author: Madhav Hada (माधव हाड़ा)
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4.27
Condition: New
Isbn: 9789393267962
Publisher: Rajpal and sons
Binding: Paperback
Language: Hindi
Genre: General,Poetry,
Publishing Date / Year: 2024
No of Pages: 128
Weight: 208 Gram
Total Price: $ 4.27
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