$7.78
Genre
Print Length
148 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
8173151512
Weight
270 Gram
हमारे मित्र एक अद्भुत सवाल हल करने में व्यस्त थे | हमें देखते ही बोले, ' कितनी ही बार इस प्रश्न की चूल से चूल भिड़ा चुका हूँ किंतु उत्तर हर बार अव्यवस्था ही आता है | ' हम आश्चर्य में पड़ गए | समझ न पाए कि मामला क्या है | कुछ देर बाद उन्होंने स्वयं ही कागजों के पुलंदे से सिर ऊपर उठाया और बोले, ' व्यवस्थाएँ कई प्रकार की होती हैं | ' हमने ' हाँ ' में उत्तर देते हुए कहा, ' होती तो हैं जी | '
बोले-' जैसे समाज-व्यवस्था, अर्थ- व्यवस्था, न्याय-व्यवस्था, शांति-व्यवस्था, राजनीतिक-व्यवस्था, कानून-व्यवस्था, परिवार-व्यवस्था, नागरिक-व्यवस्था, ग्रामीण-व्यवस्था, राज-व्यवस्था और ताज-व्यवस्था | इन सारी व्यवस्थाओं को जब कभी बीजगणित के सिद्धांत पर जोड़ने का प्रयास करता हूँ तो उत्तर आता है-' घोर अव्यवस्था | '
इतना कहकर श्रीमान अमुक थोड़ा हँसे और बोले-' क्यों भाई, तुम्हारा क्या विचार है? सारी व्यवस्थाओं का जोड़ ' घोर अव्यवस्था ' ठीक है ना?' हमने अपने मित्र को समझाया कि ' श्रीमान अमुकजी, व्यवस्था कोई भी हो, वह जोड़-घटाकर देखने की चीज नहीं होती, आँखें मूँदकर भोगे जाने की चीज होती है | आप अकारण अपना समय बरबाद कर रहे हैं |'
अपनी प्रहारक क्षमता से परिपूर्ण इस पुस्तक के व्यंग्य सामाजिक व्यवस्था की पहचान के विभिन्न दृश्य प्रस्तुत करते हैं |
0
out of 5