$10.31
Genre
Print Length
160 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2014
ISBN
9788177212310
Weight
310 Gram
जाहिर है कि इन अगडों का हाल भी बदहाल हो| लोग इनसे कतराएँ| इनका साया भी छुए तो नहाएँ| गुजारे के लिए बेचारे वही सब करें जो पहले दलितों ने किया| आज नहीं तो कल कोई-न-कोई जालिया फ्रॉडिया मसीहा चंद वोटों के खातिर अगड़ों की दुर्दशा पर कोई ‘बंडल’ रिपोर्ट लागू कर ही डाले| ऐसे जातीय जनगणना के आलोचकों से इस बात पर अपन हमराय हैं कि इसके बाद भारत में सिर्फ इनसान का अस्तित्व नामुमकिन है| उसके कोई-न-कोई जाति की दुम जरूर लगी रहेगी|
सत्तापुर में पहली बार पधारे उस व्यक्ति ने फिर अपनी सदरी की जेब टटोली| इस बार उसकी चिंता पत्र की वह स्वीकृति थी, जो एम.पी. साहब ने उसकी अरजी के संदर्भ में भेजी थी| इसमें उनके निवास का पता और आवासीय फोन नंबर था| चुनाव के बाद सांसद अपने कर्तव्य के निर्वहन में इतने व्यस्त हो गए कि क्षेत्र में आने की फुरसत उन्हें कैसे मिलती? इलेक्शन के समय वह जब गाँव आए थे, तो उसने भतीजे की नौकरी का जिक्र किया था उनसे| बड़े स्नेह से उन्होंने उसे आश्वस्त किया था कि चुनाव वह जीतें या हारें, इसके बाद पहला काम वह यही करेंगे|
हमें सूरमा भोपाली याद आते हैं| खुद तो कब के खुदा को प्यारे हो गए| बड़े प्यारे इनसान थे| आपातकाल में ‘हम दो, हमारे दो’ की जबरिया जर्राही से खासे खफा थे| आज खुश होते, कहते-‘भाई मियाँ, फौत संजय का मिशन खुद-बखुद पूरा हो गया|’ क्या नारा होगा, जानते हो? ‘जोड़ा हमारा, सबसे न्यारा!’ यह भी कह सकते हैं-‘प्यारे! अब क्या हीला-हवाला, बढ़ती आबादी पर हमने जड़ डाला अलीगढ़ी ताला|’
वरिष्ठ व्यंग्य लेखक श्री गोपाल चतुर्वेदी के मानवीय संवेदना और मर्म को स्पर्श करते तीखे व्यंग्यों का रोचक संकलन|
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