$26.00
Print Length
318 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2016
ISBN
8173150737, 9789351868590
Weight
575 Gram
मानवती के .हाथ में अग्निदत्त ने कमान दी और तीर अपने हाथ में लिया | दोनों के हाथ काँप रहे थे | अग्निदत्त का कंधा मानवती के कंधे से सटा हुआ था | सहसा मानवती की आँखों से आँसुओ की धारा बह निकली |
मानवती ने कहा - '' क्या होगा, अंत में क्या होगा, अग्निदत्त?''
'' मेरा बलिदान?''
'' और मेरा क्या होगा?
'' तुम सुखी होओगी | कहीं की रानी ''
'' धिक्कार है तुमको! तुमको तो ऐसा नहीं कहना चाहिए | ''
'' आज मुझे आँखों के सामने अंधकार दिख रहा है | '
' मानवती की आँखों में कुछ भयानकतामय आकर्षण था | बोली - '' आवश्यकता पड़ने पर स्त्रियाँ सहज ही प्राण विसर्जन कर सकती हैं | '' अग्निदत्त ने उसके कान के पास कहा- '' संसार में रहेंगे तो हम -तुम दोनों एक -दूसरे के होकर रहेंगे और नहीं तो पहले अग्निदत्त तुम्हारी बिदा लेकर... | ''
दलित सिंहनी की तरह आँखें तरेरकर मानवती ने कहा- '' क्या? आगे ऐसी बात कभी मत कहना | इस सुविस्तृत संसार में हमारे-तुम्हारे दोनों के लिए बहुत स्थान है | ''
-इसी उपन्यास से
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