Shivaji Va Suraj (शिवाजी वा सूरज)

By Anil Madhav Dave (अनिल माधव दवे)

Shivaji Va Suraj (शिवाजी वा सूरज)

By Anil Madhav Dave (अनिल माधव दवे)

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Specifications

Print Length

231 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2012

ISBN

9789350481479

Weight

695 Gram

Description

हमारी आज की परिस्थिति में हम सबको आवश्यक प्रतीत होनेवाला नया निर्माण शिवाजी महाराज द्वारा जिर्पित तंत्र नेतृत्व व समाज की उन्हीं शश्‍वत आधारभूत विशेषताओं को ध्यान में रखकर करना पड़ेगा| इस दृष्‍टि से अध्ययन व चिंतन को गति देनेवाला यह ग्रंथ है| शिवाजी ने सभी वर्गों को राष्‍ट्रीय ता की भावना से ओतप्रोत किया और एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें सभी विभागों का सृजन एवं संचालन कुशलता से हो| पुर्तगाली| वाइसराय काल द सेंट ह्विïसेंट ने महाराज की तुलना सिकंदर और सीजर से की| दुर्भाग्य से कुछ भारतीय इतिहासकारों ने शिवाजी को समुचित सम्मान नहीं दिया| प्रकाश सिंह भूतपूर्व महानिदेशक सीमा सुरक्षा बल एवं महानिदेशक उत्तर प्रदेश पुलिस/असम पुलिस While many of us are familar with shivaji’s military feats, his administrative acumen and wisdom were a revelation. The deep thought behind his prescriptions has immense relevance for today’s admisintrstors, and these chapters would immensely benefit those who have chosen a career in public service.
With regards,
Vijay Singh
Former Defense Secretary
Government of India भारत केवल सौदागरों के खेल का मैदान बन गया है, यह कटु है, पर सत्य है| शिवाजी महाराज की राजनीति और राज्यनीति मानों अमृत और संजीवनी दोनों ही हैं| छत्रपति शिवाजी महाराज की शासन व्यवस्था एक सप्रयोग सिद्ध किया हुआ महाप्रकल्प ही है| श्री अनिल दबे ने इस पुस्तक में हमें उसी से परिचित करवाया है| भारत की संसद और प्रत्येक विधानसभा के सदस्य को इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिए|
बाबा साहेब पुरंदरे, पुणे

* राजा को (नेतृत्वकर्ता ने) स्वयं के खाने-पीने का समय निश्‍चित करना चाहिए| सामान्यत: उसे नहीं बतलाना चाहिए| राजा को नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए| अपने आस-पास कार्यरत व्यक्‍तियों को भी इन पदार्थों का सेवन नहीं करने देना चाहिए| राजा के पास जब शस्‍‍त्र न हो तो उसे लंबे यमस तक निरंतर धरती को नहीं देखते रहना चाहिए|
* कार्य के प्रारंभ में शपथ लेते समय उसका (नायक का) स्वकोष व राज कोष कितना था? और जब वह निवृत होकर गया तब दोनों कोष की क्या स्थिती थी? इनका अंतर ही उसका वित्तिय चरित्र है|
* शिवाजी-''कान्होजी, आपको इसे मृत्युदंड न देने का वचन दिया था सो उसका पालन किया लेकिन कोई भी सजा (खंडोजी खेपडा को) न दी जाती तो स्वराज में लोगों को क्या संदेश जाता कि देशद्रोह और परिचय में परिचय बड़ा है! क्या यह स्वराज के लिए उचित होता?’ ’
* प्रत्येक नायक का यह प्रथम कर्तव्य है कि वह गद्दार को सबसे पहले अपनी व्यवस्था से दूर करे, उसे सजा दिलवाए और गद्दारी की प्रवृति को पनपने से कठोरता पूर्वक रोके|


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