$11.51
Print Length
192 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2013
ISBN
9788173159794
Weight
320 Gram
भारतीय वाङ्मय के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता में जिन सिद्धांतों एवं व्यवस्थाओं का उल्लेख किया गया है, वे प्रत्येक दृष्टिकोण से एक विशिष्ट प्रबंधकीय प्रणाली के अनुरूप हैं| अब समय आ गया है कि हम प्रबंधकीय शिक्षा के ढाँचे में आधारभूत परिवर्तन करें और किसी अन्य प्रबंधकीय व्यवस्था के बारे में सोचें, जो मानव जाति एवं व्यावसायिक जगत् के लिए अधिक लाभकारी हो| इस संदर्भ में भगवद्गीता हमें एक रास्ता दिखा सकती है| गीता मुख्य रूप से मनुष्य के व्यक्तिगत विकास, उसके चरित्र-निर्माण और समाज एवं विश्व के साथ उसके संबंधों की विस्तार से समीक्षा करते हुए उसका सही मार्ग प्रशस्त करती है| आवश्यकता इस बात की है कि हम पिछले साठ-सत्तर वर्षों से प्रदत्त की जानेवाली शिक्षा के बारे में पुनर्विचार करें| गीता इस संबंध में एक विकल्प है, जिसके बताए हुए रास्ते पर चलकर वर्तमान प्रबंधकीय प्रणाली में मौलिक परिवर्तन किए जाने की संभावना है|
वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी
श्री विनोद मल्होत्रा ने गीता के ज्ञानसागर में से मैनेजमेंट के कुछ रत्न खोज निकाले हैं| विश्वास है, ये सूत्र न केवल व्यावसायिक जगत् अपितु सामान्यजन के लिए भी समान रूप से उपयोगी होंगे और जीवन जीने का मार्ग आसान बनाएँगे|
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