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Genre
Print Length
280 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
9788173156304
Weight
415 Gram
मनु शर्मा के तीन उपन्यासों की शृंखला की यह तीसरी और अंतिम कड़ी है| इसका कालखंड आजादी के बाद का है| गुलामी की जंजीरें कटने के बाद देश ने आजादी का सवेरा देखा, पर यह सवेरा विभाजित था| देश दो भागों में बँट गया था-भारत और पाकिस्तान| अंग्रेज चाहते थे कि दोनों देश हमेशा एक-दूसरे के विरोधी बने रहें| एक ओर वे जिन्ना की पीठ ठोंकते| दूसरी ओर ‘अमनसभाइयों’ को भी उत्साहित करते| अमनसभाई तो थे ही सुराजियों के विरोधी| फिरंगियों ने इनका संगठन बनाया ही इसीलिए था| अमनसभाई अंग्रेज अफसरों के यहाँ ‘डालियाँ’ भिजवाते रहे और सुराजियों की गुप्त सूचनाएँ भी उन्हें देते रहे| इसी उलझन में भारतीय राजनीति आगे बढ़ रही थी कि एक सिरफिरे हिंदू ने गांधीजी को गोली मार दी| अहिंसा का पुजारी हिंसा के घाट उतार दिया गया| इसके कारणों पर भी उपन्यास में विचार हुआ है| ‘टु नेशन थ्योरी’ के आधार पर सांप्रदायिक हिंसा का जो नंगा नाच हुआ, उसका भी चश्मदीद गवाह है यह उपन्यास| ‘विभाजित सवेरा’ खंडित भारत का सार्थक, संवेदनापूर्ण और यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है इसमें लेखक की अनुभूति की सघनता, आत्मीयता और भावुकता है| कथा अंत तक विभाजित सवेरे का दंश भोगती रहती है| आजादी की मरीचिका और देश के सामने मुँह बाए खड़ी ज्वंलत समस्याओं से अवगत कराता है-‘विभाजित सवेरा’|
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