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Genre
Other
Print Length
134 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2013
ISBN
9789350484012
Weight
280 Gram
पंचायत की पद्धति अपने देश के लिए कोई नई नहीं है| आदिवासी हों या मूलवासी, सभी में हजारों वर्षों से पंचायत की अपनी एक ठोस परंपरा रही है| सुख-दुःख से लेकर लड़ाई-झगड़ों के निपटारे, शादी-विवाह और जन्म-मृत्यु में पंचायत और सगे-संबंधी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं| पंचायत समुदाय द्वारा तय मर्यादा का वहन और संचालन करती है, रीति-रिवाज एवं परंपराओं का सम्मान करती है| आज भी यह कई समुदायों में जिंदा है| निश्चित तौर पर जहाँ पंचायत जिंदा है, वह समाज आज भी स्वशासी और स्वावलंबी है| जिन समुदायों में यह पद्धति समाप्तप्राय है, वे परावलंबी बन परमुखापेक्षी बन गए हैं| विकास की मृगतृष्णा उन्हें अपनी जमीन से उजाड़ देती है; कहीं-कहीं तो भिखारी तक बना देती है|
‘अबुआ आतो रे, अबुआ राज’ महज कल्पना नहीं बल्कि एक सच्चाई है| इसे समझकर ही आगे सकारात्मक प्रयोग हो सकते हैं|
इस अर्थ में यह हैंडबुक महज नियमों का पुलिंदा नहीं है, बल्कि इसमें नियमों के साथ आदिवासी समाज के उन परंपरागत नियमों को शामिल किया गया है, जिनके बल पर आदिवासी व मूलवासी समाज हिल-मिलकर आगे बढ़ रहे हैं|
इस हैंडबुक की सार्थकता लोगों की सक्रियता पर निर्भर है| वे जितने सक्रिय होंगे, इसका जितना उपयोग कर सकेंगे, उतना ही इस पुस्तक से लाभ उठा सकेंगे|
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