$7.78
Genre
Print Length
320 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
8188266728
Weight
230 Gram
धन चला गया, कुछ नहीं गया| स्वास्थ्य चला गया, कुछ चला गया| चरित्र चला गया तो समझो सबकुछ चला गया|’ यानी संस्कार चरित्र-निर्माण के मूलाधार हैं|
संस्कार घर में ही जन्म लेते हैं| इनकी शुरुआत अपने परिवार से ही होती है| संस्कारों का प्रवाह बड़ों से छोटों की ओर होता है| बच्चे उपदेश से नहीं, अनुकरण से सीखते हैं| वे बड़ों की हर बात का अनुकरण करते हैं|
बालक की प्रथम गुरु माता ही होती है, जो अपने बच्चे में आदर, स्नेह, अनुशासन, परोपकार जैसे गुण अनायास ही भर देती है| परिवार रूपी पाठशाला में बच्चा अच्छे-बुरे का अंतर बड़ों को देखकर ही समझ जाता है|
आज की उद्देश्यहीन शिक्षा-पद्धति बच्चों का सही मार्ग प्रशस्त नहीं करती| आज मर्यादा और अनुशासन का लोप हो रहा है| ज्ञान की उपेक्षा तथा सादगी का अभाव होता जा रहा है| प्रकृति में विकार आ जाने तथा सामाजिक वातावरण प्रदूषित हो जाने के कारण आज संस्कारों की बहुत आवश्यकता है|
प्रस्तुत पुस्तक में संस्कारों की व्याख्या अत्यंत सुबोध भाषा में समझाकर कही गई है| आज की पीढ़ी ही नहीं, हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए एक पठनीय पुस्तक|
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