$14.36
Print Length
192 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2018
ISBN
8188140996, 9788188140992
Weight
450 Gram
कहते हैं धर्म वेदों में प्रतिपादित है| वेद साक्षात् परम नारायण है| वेद में जो अश्रद्धा रखते हैं, उनसे भगवान् बहुत दूर हैं| वेदों का अर्थ है-भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविष्कृत आध्यात्मिक सत्यों का संचित कोष| वास्तव में जीवन को सुंदर व साधक बनानेवाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है| मैक्स म्यूलर का तो यहाँ तक कहना था कि वेद मानव जाति के पुस्तकालय में प्राचीनतम ग्रंथ हैं|
वेद संख्या में चार हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद| वेद का शाब्दिक अर्थ है ‘ज्ञान’ या ‘जानना’| ये हमारे ऋषि-तपस्वियों की निष्कपट, निश्छल भावना की अभिव्यक्ति हैं| इनमें जीवन को सद्मार्ग पर प्रशस्त करने का आह्वान है| इतना ही नहीं, वेदों में आत्मा-परमात्मा, देवी-देवता, प्रकृति, गृहस्थ-जीवन, सृष्टि, लोक-परलोक के साथ-साथ नाचने-गाने आदि की बातें भी निहित हैं| इन सबका एक ही उद्देश्य है-मानव-कल्याण|
एक ओर जहाँ वेदों में ईश-भक्ति और अध्यात्म की महिमा गाई गई है, वहीं दूसरी ओर कर्म को ही कल्याण का मार्ग कहा गया है|
वेद हमारे अलौकिक ज्ञान की अनुपम धरोहर हैं| अत: इनके प्रति जन-सामान्य की जिज्ञासा होना स्वाभाविक है, इसलिए वेदों के गूढ़ ज्ञान को हमने कथारूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है| इन कथा-कहानियों के माध्यम से सुधी पाठक न केवल इन्हें पढ़-समझ सकते हैं, बल्कि पारंपरिक वैदिक ज्ञान को आत्मसात् कर लोक-परलोक भी सुधार सकते हैं|
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