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Hindutva Evam Rashtriya Punarutthan (हिंदुत्व एवं राष्ट्रीय पुनरुत्थान)

Price: $ 14.08

Condition: New

Isbn: 9789350482698

Publisher: Prabhat Prakashan

Binding: Hardcover

Language: Hindi

Genre: Culture and Religion,

Publishing Date / Year: 2013

No of Pages: 256

Weight: 430 Gram

Total Price: $ 14.08

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भारतीय समाज में व्यक्‍ति का उत्तरोत्तर अमानवीयकरण ही विगत साठ वर्षों के वैचारिक इतिहास का केंद्रीय तत्त्व रहा है| किसी भी समाज में यदि व्यक्‍ति का निरंतर अमानवीयकरण होता रहे, तो वह समाज कभी भी मजबूत नहीं हो सकता, चाहे कितना भी बड़ा भौतिक ढाँचा क्यों न खड़ा कर ले| आज के दौर में जब नैतिक मूल्यों का पतन तथा चारित्रिक ह्रास हमारे राष्‍ट्रीय संकट का एक महत्त्वपूर्ण आयाम है, समाज में धर्म की पुनर्स्थापना आवश्यक है| यदि ऐसा नहीं हुआ तो राष्‍ट्र धीरे-धीरे इस पतन के जहर से समाप्‍त हो जाएगा| यह पतन समाज में चारों ओर दिखाई दे रहा है| अधिकारी रिश्‍वत में पकड़े जा रहे हैं, राजनेता धन व पद के लिए दल-बदलने में लगे हैं, अध्यापक प्रश्‍न-पत्र बेच रहे हैं, छात्र नकल करके परीक्षा पास करना चाहते हैं, चिकित्सक अपने मरीजों से धोखाधड़ी करके पैसा कमा रहे हैं आदि| कमोबेश यह पतन प्रत्येक समाज में होता दिखता है, लेकिन जितना गहरा व जिस गति से यह भारतीय समाज में हो रहा है, वह खतरे की घंटी है| इस चारित्रिक पतन के कारण युवा वर्ग में गहरा रोष व कुंठा जन्म लेती जा रही है| इस नैतिक पतन को रोकना अत्यावश्यक है| प्रश्‍न है कि यह कैसे होगा, इसे करने हेतु कौन नेता आगे आएगा? यह कार्य वही नेता कर सकता है, जिसके पास पुनरुत्थान की एक कार्यसूची (एजेंडा) हो तथा वह इसके प्रति समर्पित भी हो| इस कार्यसूची में कौन-कौन से कार्य शामिल किए जाने चाहिए| इस पुस्तक में मैंने राष्‍ट्र पुनरुत्थान के लिए जो तत्त्व आवश्यक हैं, उनका प्रतिपादन मैंने यहाँ किया है, ताकि भारत की शान को पुनर्प्रतिष्‍ठित किया जा सके| हिंदुत्व के सहारे ही समाज में एक जन-जागरण शुरू किया जा सकता है, जिससे हिंदू अपने संकीर्ण मतभेदों-स्थान, भाषा, जाति आदि से ऊपर उठकर स्वयं को विराट्-अखंड हिंदुस्तानी समाज के रूप में संगठित करें, ताकि भारत को पुनः एक महान् राष्‍ट्र बनाया जा सके|