$18.13
Genre
Print Length
379 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
8173152764
Weight
570 Gram
भारतीय धर्म दर्शन, साहित्य, कला आदि अतीत से ही विश्व के विद्वानों, जिज्ञासुओं के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं | हमारी संस्कृति अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण अतीत से अब तक यथावत् बनी हुई, अजर और अमर है | हिंदू जैन, बौद्ध, सिख आदि धर्मों के पालन में जो परिपक्वता, पवित्रता, वैज्ञानिकता, एकाग्रता, आत्मोन्नति के उपाय, इंद्रियों पर संयम एवं आत्मशुद्धि से सर्वांगीण विकास के संबल सुलभ कराए गए हैं, उनमें प्रमुखत: एकरूपता एवं समानता ही है | इस परिप्रेक्ष्य में प्रयुक्त पूजा, उपासना, अनुष्ठान तथा विविध पद्धतियों में प्रयुक्त प्रतीक, उपकरण, परंपराओं आदि की अद्वितीय एकरूपता है; यथा- कलश नारियल रथ माल तिलक स्वस्तिक, श्री, ध्वज, घंटा-घंटी, शंख, चँवर, चंदन, अक्षत, जप, प्रभामंडल, ॐ , प्रार्थना, रुद्राक्ष, तुलसी, धर्मचक्र, आरती, दीपक, अर्घ्य, अग्नि, कुश, पुष्प इत्यादि | इनकी समानता हमें समन्वयात्मक भावना के सुदृढ़ीकरण का संबल प्रदान करती है, जिसकी महत्ता को हमें परखना चाहिए और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखते हुए अपने एवं समाज के सर्वांगीण विकास के लिए इसे अपनाना चाहिए | हमारी संस्कृति के सूत्रधारों, तत्त्ववेत्ता ऋषि-मुनियों तथा मनीषी-विद्वानों ने अपनी कठोर तपस्या एवं प्रखर पांडित्य से पखारकर जो ज्ञान की थाती हमें सौंपी है; हमारे जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए जो विधि- विधान बनाए हैं, बताए हैं तथा जो पावन परंपराएँ प्रचलित की हैं, उनका गूढ़ रहस्य समझकर हमें अपनाना चाहिए | ये ही हमारे बहुमुखी विकास की आधारशिलाएँ हैं तथा इन्हीं पर भारतीय संपदा एवं संस्कृति का भव्यतम प्रासाद प्रतिष्ठित होकर प्राणियों के कल्याण का आश्रयस्थल बन सकता है | अपनी थाती को परखकर अपनाने का आह्वान ही इस पुस्तक की सर्जना का उद्देश्य है | '
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