आर्थिक समृद्धि और टेक्नोलॉजी के वैभव के साथ समाज में मूल्यों के प्रति दृष्टिकोण में लाजमी बदलाव आता है| यानी जिन्हें हम सामाजिक मूल्य कहते हैं, सामाजिक मर्यादाएँ मानते हैं, मानवीय आदर्श भी कह देते हैं, अर्थ और टेक्नोलॉजी के वैभव से परिपूर्ण समाज में ऐसे मूल्यों, ऐसे आदर्शों और ऐसी मर्यादाओं के प्रति आग्रह में निर्णायक कमी आती है| इस कमी से आज का अमेरिका ध्वस्त हो रहा है, पश्चिमी यूरोप इसी कमी से त्रस्त हो रहा है तो वैसा बनने को आतुर अपना भारत इस कमी की संभावना से भयग्रस्त हो रहा है| महाभारत कालीन समाज के हमारे 5,000 वर्ष पहले के पूर्वज आर्थिक समृद्धि और टेक्नोलॉजिकल वैभव की विपुलता से पैदा हुई इसी मूल्य-विहीनता और मर्यादा-भंग से ग्रस्त, त्रस्त और ध्वस्त रहे तो इसे आप अस्वाभाविक कैसे मान सकते हैं? मूल्यों और मर्यादाओं की हीनता के परिणामस्वरूप समाज तनावों की जिस कोख का निर्माण खुद अपने लिए कर लेता है, उस कोख में से महाभारत जैसा महाभयानक महासंग्राम ही जन्म ले सकता था| यह पुस्तक उस महाभारत कालीन समाज पर, उसके तनावों पर और नए व्यक्तित्व की खोज की उस समय के समाज की कोशिशों पर ही एक आलेख॒है| संदेश यह भी है कि आज हम ह्यह्यतरह के जिन तनावों को झेल रहे हैं, उनसे पार पाने के लिए क्या हम वैसी ही गहरी कोशिशें कर रहे हैं जैसी कोशिशें हमारे महाभारतकालीन पूर्वजों ने की थीं? "
Mahabharat Ka Dhramsankat (महाभारत का धर्मसंकट)
Author: Suryakant Bali (सूर्यकांत बाली)
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13.47
Condition: New
Isbn: 9789350485811
Publisher: Prabhat Prakashan
Binding: Hardcover
Language: Hindi
Genre: Novels and Short Stories,
Publishing Date / Year: 2016
No of Pages: 224
Weight: 385 Gram
Total Price: $ 13.47
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