$10.45
Genre
Print Length
168 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2018
ISBN
9789381063279
Weight
320 Gram
पता नहीं किस भले आदमी ने बता दिया कि डेमोक्रेसी के तीन खंभे होते हैं-न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका! तीन खंभों पर कभी कोई इमारत टिकी है जो डेमोक्रेसी टिकेगी? गनीमत समझो कि अपने देश में डेमोक्रेसी का एक चौथा खंभा 'धर्मपालिका’ का भी है| अगर यह न होता तो डेमोक्रेसी का कब का सत्यानाश हो जाता| यह खंभा है तो अदृश्य, मगर बीच-बीच में धूम-धड़ाके से दिखता रहता है| डेमोक्रेसी के सारे फालोअर और ऑब्जर्वर मजबूती से इसे थामे रहते हैं| कुछ इसके साथ 'यूज एंड थ्रो’ का संबंध रखते हैं तो कुछ 'कैच एंड यूज’ का| मल्टीपरपज यूटीलिटी है इस खंभे की| जब जैसा दाँव लगा, वैसा इस्तेमाल कर लिया| यह खंभा जन-जन (सच्ची बोले तो वोटर) की हृदय-स्थली में मजबूती से गड़ा है, तभी गाहे-बगाहे बाकी तीनों खंभों की चूलें हिलाता रहता है| देश का शायद ही कोई ऐसा खंभा हो, जो इस खंभे के आगे नतमस्तक न हुआ हो| चाहे खुशी से या मजबूरी में, मगर दंडवत् सभी ने की है|
-इसी संग्रह से
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