$11.65
Genre
Print Length
192 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
9789380183114
Weight
330 Gram
कुरसीपुर के कबीर का जन्म एक पंचायत-प्रधान के परिवार में हुआ| उसने अपने पूज्य पिता को बचपन से, नाली-खड़ंजे और नरेगा का सदुपयोग करते; याने पैसे खाते देखा| वह जब से स्कूल गया, पिता के लिए कमाई का साधन बन गया| नरेगा के रजिस्टर पर कहीं पैर का अँगूठा लगाता, कहीं हाथ का| प्रधानजी ने जब अपने घर के पास नाली बनवाई तो उसमें उसने कबीर कुमार के नाम से हस्ताक्षर कर दिहाड़ी कमाई| तब तक वह अक्षर-ज्ञानी हो चुका था| उसके प्राध्यापक उसकी प्रतिभा से चकित थे| वह उसके बाप से संतान की प्रशंसा करते-“प्रधानजी, आपका पुत्र तो जन्मजात नेता है| आपने तो अपने जन्म-स्थान की सेवा की| आप तो पंचायत में रह गए, यह पार्लियामेंट जाकर देश की सेवा करेगा|” नए कबीर की मान्यता है कि सियासत में कभी किसी दल के कोई सिद्धांत-उसूल नहीं हैं, न कोई विकास का कार्यक्रम| हर दल का इकलौता लक्ष्य, कार्यक्रम, उसूल और फलसफा सत्ता की कुरसी पर साम, दाम, दंड, भेद से कब्जा करना है और एक बार कब्जा हो जाए तो उसे बरकरार रखना है| बाकी हर बात जैसे चुनाव घोषणा-पत्र, सेक्यूलर-सांप्रदायिक की बहस, सुशासन वगैरह-वगैरह सिर्फ कोरी बकवास है|
-इसी संग्रह से
हिंदी व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर गोपाल चतुर्वेदी के मारक व्यंग्यबाणों से समाज के हर उस वर्ग को अपना निशाना बनाते हैं, जिनके लिए मानवीय मूल्य, संवेदना और सरोकार कोई मायने नहीं रखते| वे हवा भरे गुब्बारे की तरह हैं, जिन्हें इन व्यंग्यों की तीखी नोक फुस्स कर देती है|
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