Munshi Navneetlal (मुन्शी नवनीतलाल)

By Manu Sharma (मनु शर्मा)

Munshi Navneetlal (मुन्शी नवनीतलाल)

By Manu Sharma (मनु शर्मा)

$10.24

$10.75 5% off
Shipping calculated at checkout.

Click below to request product

Specifications

Print Length

167 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2010

ISBN

9788177211047

Weight

305 Gram

Description

“अच्छा तुम स्वयं ही पूछो कि तुम क्या हो?” साधु बोलता चला गया-“तुम पंडा हो, पुजारी हो, झूठी गवाही देनेवाले हो, धोखेबाज हो या मुंशीजी हो, क्या-क्या हो?” मुंशीजी की यह भी हिम्मत नहीं हुई कि पूछें कि आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं? आपको क्या अधिकार है| वह भीगी बिल्ली बने बोले, “मैं तो महज मुंशी हूँ|” और अपना सारा साहस बटोरकर उन्होंने मुंशीगीरी की व्याख्या करते हुए कहा, “मुंशी न कोई जाति है, मुंशीगिरी न कोई पेशा है, यह एक जीवन पद्धति है| यह एक प्रकृति है, हिसाबिया प्रकृति, एकाउंटिंग नेचर| मुंशी लहरों का भी हिसाब रखता है| मुंशी सत्य और असत्य में, बेईमानी और ईमानदारी में, नैतिकता और अनैतिकता में कोई फर्क नहीं करता| वह इन सभी संदर्भों में समदर्शी होता है| उसकी समदर्शिता ही राजनेताओं ने ग्रहण की है| इसी से आज वे इतने महान् हो गए हैं| आज समाज में कलाकार महान् नहीं है, साहित्यकार महान् नहीं है, ज्ञानी और विज्ञानी महान् नहीं हैं, साधुड़संन्यासी महान् नहीं हैं| आज महान् है राजनेता| उसके पीछे भीड़ चलती है| वह महामूर्ख होने पर भी बुद्धिमानों के सम्मेलनों का उद्घाटन करता है| वह ज्ञान और विज्ञान की महान् पुस्तकों को लोकार्पित करता है| जिसके लिए संगीत भैंस के आगे बीन है, वह संगीत सम्मेलनों और भारत महोत्सवों की शोभा बढ़ाता, बीन के आगे भैंस नचाता है, आखिर क्यों? क्योंकि उसने हम मुंशियों की समदर्शिता स्वीकार कर ली है|”
-इसी पुस्तक से मुंशी नवनीतलाल के माध्यम से समाज में फैली खोखली मान्यताओं और बनावटीपन पर गहरा आघात करते पैने-चुटीले व्यंग्य|


Ratings & Reviews

0

out of 5

  • 5 Star
    0%
  • 4 Star
    0%
  • 3 Star
    0%
  • 2 Star
    0%
  • 1 Star
    0%