अब मैं कुरसी पर बैठता तो हूँ; पर रात में मुझे अजीब से स्वप्न आते हैं| कभी लगता है, कोई कुरसी खींच रहा है; कभी कोई उसे उलटता दिखाई देता है| कभी कुरसी सीधी तो मैं उलटा दिखाई देता हूँ| मैं परेशान हूँ; पर कुरसी आराम से है| जैसे लोग मरते हैं; पर शमशान सदा जीवित रहता है| ऐसे ही नेता आते-जाते हैं; पर कुरसी सदा सुहागन ही रहती है| कुरसी की महिमा अपरंपार है| यह सताती, तरसाती और तड़पाती है; यह खून सुखाती और दिल जलाती है; यह झूठे सपने दिखाकर भरमाती है; यह नचाती, हँसाती और रुलाती है; यह आते या जाते समय मुँह चिढ़ाती और खिलखिलाती है| यह वह मिठाई है, जिसे खाने और न खाने वाले दोनों परेशान हैं| जिसे मिली, वह इसे बचाने में और जिसे नहीं मिली, वह इसे पाने की जुगत में लगा है| धरती सूर्य की परिक्रमा कर रही है और धरती का आदमी कुरसी की| 21वीं सदी की आन, बान और शान यह कुरसी ही है| कुरसी तू धन्य है| तेरी जय हो, विजय हो|
Kushti Tu Badbhagini (कुर्सी तू बदभगिनी)
Author: Vijay Kumar (विजय कुमार)
Price:
$
7.78
Condition: New
Isbn: 9788177211269
Publisher: Prabhat Prakashan
Binding: Hardcover
Language: Hindi
Genre: Novels and Short Stories,Humor,
Publishing Date / Year: 2011
No of Pages: 136
Weight: 290 Gram
Total Price: $ 7.78
Reviews
There are no reviews yet.