$12.27
Genre
Print Length
208 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2014
ISBN
9789383110285
Weight
375 Gram
प्रेम जनमेजय व्यंग्य-लेखन के परंपरागत विषयों में स्वयं को सीमित करने में विश्वास नहीं करते हैं| उनका मानना है कि व्यंग्य लेखन के अनेक उपमान मैले हो चुके हैं| बहुत आवश्यक है सामाजिक एवं आर्थिक विसंगतियों को पहचानने तथा उनपर दिशायुक्त प्रहार करने की| व्यंग्य को एक गंभीर तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयोजन की विधा मानने वाले प्रेम जनमेजय आधुनिक हिंदी व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं| पिछले बयालीस वर्षों से साहित्य रचना में सृजनरत इस साहित्यकार ने हिंदी व्यंग्य को सही दिशा देने में सार्थक भूमिका निभाई है| परंपरागत विषयों से हटकर प्रेम जनमेजय ने समाज में व्याप्त आर्थिक विसंगतियों तथा सांस्कृतिक प्रदूषण को चित्रित किया है| ‘व्यंग्य यात्रा’ के संपादन द्वारा हिंदी व्यंग्य में एक नया मापदंड प्रस्तुत किया है| हिंदी के अनेक आलोचकों/लेखकों-नामवर सिंह, नित्यांनद तिवारी, निर्मला जैन, कन्हैयालाल नंदन, श्रीलाल शुक्ल, रवींद्रनाथ त्यागी, रामदरश मिश्र, गोपाल चतुर्वेदी, ज्ञान चतुर्वेदी आदि ने प्रेम जनमेजय के व्यंग्य लेखन पर सकारात्मक लिखा है| धारदार, चुटीले तथा सात्त्विक व्यंग्य-रचनाओं का पठनीय संग्रह|
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