$7.78
Print Length
151 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2014
ISBN
9789350485828
Weight
300 Gram
मराठा शासन का अंत वर्ष 1818 में हुआ, लेकिन उस समय सतपुड़ा के बहादुर भीलों ने अनेक वर्षों तक अंग्रेजों से गुरिल्ला लड़ाई की| सतपुड़ा, सातमाला, अजिंठा के पर्वतों के अनेक भील वीरों ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया| उनमें सातमाला के भागोजी नाइक, सतपुड़ा के कजरसिंग नाइक, भीमा नाइक और तंट्या भील का संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कुछ स्वर्णिम पृष्ठ हैं|
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की तरह इन आदिवासी विद्रोहियों का इतिहास भी महत्त्वपूर्ण है| शक्तिशाली ब्रिटिश सत्ता की ग्यारह सालों तक नींद उड़ा देनेवाले तंट्या भील अंग्रेजों की दृष्टि में एक डाकू था; लेकिन सौ साल पहले आदिवासियों व किसानों को साहूकार और जुल्मी सरकार के खिलाफ विद्रोह की प्रेरणा देनेवाला तंट्या असाधारण ही होगा| आदिवासी और किसानों की क्रांति का पहला नायक तंट्या था| उसने सतपुड़ा के दोनों भागों-खानदेश और नर्मदा घाटी-के आदिवासियों और किसानों में राष्ट्रीयता की भावना जगाई|
महाराष्ट्र के लोग अब तक तंट्या को आदिवासी नायक के रूप में नाटक और लोकगीतों के माध्यम से ही जानते थे| इस आसाधारण जननायक के चरित्र का यह लेखन एक प्रकार से इतिहास का ही पुनर्लेखन है|
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्त्वपूर्ण आदिवासी नायक की असाधारण व प्रेरणाप्रद जीवन-कथा|
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