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Jhagra Niptarak Daftar (झगड़ा निपटारक दफ्तर)

Price: $ 7.78

Condition: New

Isbn: 9789380186610

Publisher: Prabhat Prakashan

Binding: Hardcover

Language: Hindi

Genre: Novels and Short Stories,Humor,

Publishing Date / Year: 2012

No of Pages: 96

Weight: 310 Gram

Total Price: $ 7.78

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'आप दोनों यहाँ झगड़ा निपटाने आई हैं?’ ’ ''और नहीं तो क्या मक्खी मारने आई हैं?’ ’ चिक्की ने चिढ़कर जवाब दिया| इस पर कुन्नी और मोना को भी बहुत गुस्सा आया| दफ्तर में थीं, नहीं तो बतातीं इस शैतान लड़की को! और चिक्की की तो आदत ही यह थी| अगर उससे पूछा जाता, 'तुमने खाना खा लिया?’ तो वह 'हाँ’ कहने के बदले कहती, 'और नहीं तो क्या मैं भूखी बैठी हूँ!’ अगर सवाल होता-'क्या तुम आज अपनी मम्मी के साथ बाजार गई थी?’ तो वह जवाब देती-'और नहीं तो क्या तुम्हारी मम्मी के साथ जाऊँगी?’ कोई पूछता-'चिक्की! ये तुम्हारे कान के बूँदे सोने के हैं?’ तो फौरन कहती-'और नहीं तो क्या तुम्हारी तरह पीतल के हैं?’ मतलब वह हर बात में, हर शब्द में झगड़े का इंजेक्शन लिये रहती| इस बार कुन्नी बोली, ''पूरी बात बताइए झगड़े की|’ ’ चिक्की ही फिर बोली, ''बताना क्या है, इसने मेरे पैर की चटनी बना दी तो मैं इसे पीटूँगी ही|’ ’ दूसरे दफ्तर में बैठे बिल्लू ने सिर्फ चटनी ही सुना, फौरन बोला, ''देखो, मैं कहता था न, आम की मीठी चटनी है इनके पास|’ ’ इस पर सोनू गुर्राई-''मैंने जान-बूझकर इसका पैर नहीं कुचला था|’ ’ चिक्की गुस्साई-''जान-बूझकर नहीं कुचला था तो क्या अनजाने कुचला था? मेरा पैर कोई सूई-धागा था, जो तुझे दिखता नहीं था?’ ’ -इसी संग्रह से सुप्रसिद्ध लेखिका डॉ. सूर्यबाला ने बड़ों के लिए ही नहीं, वरन् बच्चों के लिए भी विपुल मात्रा में साहित्य का सृजन किया है| प्रस्तुत है, बच्चों के लिए लिखीं उनकी हास्य-व्यंग्यपूर्ण कुछ चुटीली तथा मन को छूनेवाली रचनाएँ|