$10.45
Genre
Print Length
159 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2018
ISBN
9789380183596
Weight
320 Gram
मैं हक्का-बक्का रह गया| वह मछली ही थी| मछली के सिवा ऐसा कोई हँस ही नहीं सकता| थोड़ी ज्यादा लंबी हो गई थी|
बदन हृष्ट-पुष्ट हो गया था| कुछ श्याम हो गई थी| घुटनों तक पहुँचने वाले बाल सूखे थे|
''मुझे पहचाना नहीं?’ ’ कहकर मछली फिर से हँसी|
''कल बड़े चाचा आए थे| तुम सब आए हो, ऐसी खबर दी| मुझे लगता ही था कि तुम आओगे|’ ’
''बहुत साल बीत गए, नहीं?’ ’ मैंने कहा| बाद में आगे बताया, ''रामगर महाराज स्वर्ग सिधार गए, यह समाचार मुझे आज ही मिला|’ ’
मछली ने आसमान की ओर उँगली दिखाई, बाद में त्रिशूल के सामने देखकर बोली, ''पिताजी का त्रिशूल वैसी ही स्थिति में सँभालकर रखा है|’ ’
''तब से...तब से...’ ’ मैं थोड़ा हिचकिचाया| उसे अब 'तू’ कैसे कह सकता हूँ? 'मछली’ कहकर भी संबोधन नहीं कर सकता| ''यहाँ कौन रहता है?’ ’ जवाब जानता था, उसके बावजूद सवाल पूछ बैठा|
''रक्षा करती हैं जगदंबा माता और आसपास की देखभाल में मेरा समय बीत जाता है|’ ’
-इसी संग्रह से
भारतीय समाज में व्याप्त बुराइयों, विसंगतियों, पारिवारिक उलझनों, सामाजिक मान्यताओं एवं परंपराओं, उनके आदर्शों का यथार्थ चित्रण पेश करती भावपूर्ण व रोचक कहानियाँ| "
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