$11.92
Genre
Print Length
200 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2016
ISBN
9789380823591
Weight
350 Gram
अमर गोस्वामी की कहानियों में बार-बार एक अमानवीय ऊँचाई पर पहुँचकर त्रासदी और कौतुक के बीच का फेंस टूटकर बिखर जाता है और दर्द की चुभन से हम ठहाका लगाकर हँसते नजर आते हैं| सिर्फ कहानी में ही नहीं, किसी भी कला विधा में ऐसे शिल्प को पाना अत्यंत कठिन काम है| कथाकार का यह शिल्प न केवल उन्हें विशिष्ट बनाता है, बल्कि अपने युग के कथाकार होने की सार्थकता को भी चिह्नित करता है| -अशोक भौमिक अमर गोस्वामी को मनुष्य के मन को परत-दर-परत पढऩे की शक्ति प्राप्त है और उनकी कलम कभी-कभी जादूगर का डंडा हो जाती है| वे कहानी कहते जाते हैं और आप उनके साथ बहते जाते हैं| -रवींद्रनाथ त्यागी अमर गोस्वामी की कहानियों में कहानी के पात्र नहीं, कथाकार का अनुभव बोलता है, जो हमारे समाज का ही अनुभव है| इन कहानियों को पढ़कर हम चौंकते नहीं, एक गहरा उच्छ्वास भर लेते हैं और होंठ जबरन तिरछे हो जाते हैं| हम अपनी मुसकान को लेखक की कटाक्ष भरी मुसकान से मिलाए रहते हैं और खत्म होने पर बुदबुदाते हैं-'मान गए गुरु, कहानी ऐसे भी लिखी जा सकती है|’ -राकेश मिश्र अमर गोस्वामी के पात्र व्यवस्था की माँग नहीं, बल्कि व्यवस्था की जड़ता पर गहरी चोट करते हैं और व्यवस्था के यथास्थितिवाद के प्रति उनमें एक गहरा आक्रोश है| वे सही मायने में विपक्ष की भूमिका निभाते हैं| -डॉ. प्रमोद सिन्हा अमर गोस्वामी समकालीन दौर के उन चंद कहानीकारों में से हैं, जिन्होंने अपना मुहावरा पा लिया है| -प्रकाश मनु हिंदी कहानी में जो सहज रूप से बहनेवाली किंचित् लोकप्रिय धारा है, उसमें अमर गोस्वामी का भी योगदान है| यदि हम लोकप्रियता को साहित्यिकता का शत्रु न मानें तो अमर गोस्वामी की कहानियों के महत्त्व को भी स्वीकार करना पड़ेगा| -वेदप्रकाश भारद्वाज
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