$10.38
Print Length
160 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
9789380183398
Weight
315 Gram
सहसा उसे विश्वास नहीं हुआ कि कोई उल्टी-पैखाना करने से भी मर सकता है, फिर वह जोर-जोर से रोने लगी| उसकी रुलाई सुनकर अमर और सुंदर चार साथियों के साथ आउटडोर पहुँचे| अमर ने झुककर बूढ़े शरीर की धड़कन और नब्ज देखी| कोई सुगबुगाहट नहीं थी| उन्होंने बुढ़िया की देह पर लगी मैल की परवाह किए बगैर तलुओं-तलहथियों को रगड़ा| तब तक पतोहू आँसू पोंछकर सिर से आँचल कंधे पर रख उन्हें कोसती रही थी, ‘सरकार से रोकड़ा लेते हो, हमें बिना दवा-ईलाज के मारने के लिए आए? हाय! मार डाला...तुमने उसे मार दिया| वहाँ क्या कर रहे हो बैठकर? तनखा बढ़ाना चाहते हो? अरे, जान बचानेवाला भगवान् होता है| तुमने तो हमारी माई को मार डाला| शैतान हो तुम सब, चले जाओ यहाँ से| हम अपनी माई को रिक्शा पर ले जाएँगे घर अकेले| मत छुओ हमारी माई को|’
-इसी संग्रह से
इनसान की खुशियाँ, गम, ख्वाब वर्गगत संस्कारों तथा क्रियाओं का अंतर्विरोध चारों ओर पसरा है| मानवीय मूल्य टूटे हैं, हर बार संवेदना उद्वेलित हुई है| प्रस्तुत कहानियों में लेखक ने इसी अंतर्विरोध को रेखांकित किया है| कहानियाँ एक से बढ़कर एक हैं| मनोरंजन ही नहीं, अंतर्मन को छू लेनेवाली ये कहानियाँ पाठकों को अवश्य पसंद आएँगी|
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