$7.00
Genre
Print Length
159 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2007
ISBN
8173151628
Weight
325 Gram
स्वतंत्रता के बाद सामाजिक जीवन को धर्मनिरपेक्षता और सर्वधर्म-समभाव का लबादा ओढ़ाकर हमने जो सांप्रदायिक सद्भाव स्थापित करने का संकल्प लिया था उसे हमारे स्वयंभू नेताओं और राजनीतिज्ञों ने निजी स्वार्थ की आग में बेरहमी से भून डाला | स्वातंत्र्य पूर्व का, एकता- अखंडता के सूत्र में बँधा भारत कुछ वर्षों बाद ही विघटन और बिखराव की पीड़ा में कराहने लगा | जातीयता और प्रांतीयता का नारा बुलंद करनेवालों की खूब बन आई | फूट के बीज बोनेवालों की जमात दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई और सारा देश विनाश के कगार पर पहुँचा नजर आने लगा | यद्यपि हमारे अनेक विचारक, दार्शनिक, साहित्यकार और समाज- सुधारक भाईचारे और सद्भाव का वातावरण बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं, फिर भी कुछ विघटनकारी शक्तियाँ आपसी मनमुटाव और टकराव की स्थिति पैदा कर अलगाववाद को हवा देते हुए अपना उल्लू सीधा कर रही हैं | आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है देश को विघटन से बचाने की, उसे फिर से एकता- अखंडता के सूत्र में बाँधने की | इस संकलन की कहानियों का विषय व क्षेत्र सांप्रदायिक सद्भाव और असद्भाव दोनों की अलग- अलग खोज करना है | साथ ही ये कहानियाँ एक अखंड राष्ट्र के निर्माण की कल्पना से हमारी निर्जीव नसों में नए रक्त का संचार भी करती हैं |
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