$7.00
Genre
Print Length
144 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
8173151768
Weight
325 Gram
महानगरों में पारिवारिक संबंध, नैतिक मूल्य, धर्म और सभ्यता के सारे सिद्धांत असत्य प्रतीत होते हैं| भाई-बहन, माँ-बाप, मित्र-परिचित, पास-पड़ोस के वे सभी संबंध, जिनमें हजारों वर्षों की सभ्यता का इतिहास छिपा हुआ था, इस महानगरी ने सबको व्यर्थ कर दिया है| आज आवश्यकता है कि नगर और महानगर के बीच जो असंतुलन बढ़ रहा है वह कम हो| भीड़ इनसानों का जंगल न बनकर मानवीय स्तर पर जीवित रहे| आदमी और आदमी के बीच टूटन, घुटन, संत्रास, बिखराव एवं अपरिचय का जो वातावरण बन रहा है वह इस सीमा तक न बढ़े कि हम नागरिक सभ्यता से ऊबकर जंगली सभ्यता की ओर भाग निकलें|
इस पुस्तक में जो कहानियाँ संकलित की गई हैं उनके रचनाकारों ने अपने-अपने ढंग से महानगरों की विषमताओं एवं विसंगतियों को देखा है, समझा है, महसूस किया है, विश्लेषित किया है और अभिव्यक्त किया है| इस संकलन की कहानियाँ महानगरों की अनेकानेक समस्याओं से जूझते व्यक्ति और उसके मनोविज्ञान का परिचय कराने में सहायक होंगी, ऐसा हमारा विश्वास है|
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