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Specifications

Print Length

352 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2017

ISBN

8173154139, 9789386300096

Weight

545 Gram

Description

हिंदी कथा-साहित्य के सुप्रसिद्ध गांधीवादी रचनाकार श्री विष्णु प्रभाकर अपने पारिवारिक परिवेश से कहानी लिखने की ओर प्रवत्त हुए| बाल्यकाल में ही उन दिनों की प्रसिद्ध रचनाएँ उन्होंने पढ़ डाली थीं|
उनकी प्रथम कहानी नवंबर १९३१ के ‘हिंदी मिलाप’ में छपी| इसका कथानक बताते हुए वे लिखते हैं, ‘परिवार का स्वामी जुआ खेलता है, शराब पीता है, उस दिन दीवाली का दिन था| घर का मालिक जुए में सबकुछ लुटाकर शराब के नशे में धुत्त दरवाजे पर आकर गिरता है| घर के भीतर अंधकार है| बच्चे तरस रहे हैं कि पिताजी आएँ और मिठाई लाएँ| माँ एक ओर असहाय मूकदर्शक बनकर सबकुछ देख रही है| यही कुछ थी वह मेरी पहली कहानी|’
सन् १९५४ में प्रकाशित उनकी कहानी ‘धरती अब भी घूम रही है’ काफी लोकप्रिय हुई| लेखक का मानना है कि जितनी प्रसिद्धि उन्हें इस कहानी से मिली, उतनी चर्चित पुस्तक ‘आवारा मसीहा’ से भी नहीं मिली|
श्री विष्णुजी की कहानियों पर आर्यसमाज, प्रगतिवाद और समाजवाद का गहरा प्रभाव है| पर अपनी कहानियों के व्यापक फलक के मद्देनजर उनका मानना है कि ‘मैं न आदर्शों से बँधा हूँ, न सिद्धांतों से| बस, भोगे हुए यथार्थ की पृष्ठभूमि में उस उदात्त की खोज में चलता आ रहा हूँ|...झूठ का सहारा मैंने कभी नहीं लिया|’
उदात्त, यथार्थ और सच के धरातल पर उकेरी उनकी संपूर्ण कहानियाँ हम पाठकों की सुविधा के लिए आठ खंडों में प्रस्तुत कर रहे हैं| ये कहानियाँ मनोरंजक तो हैं ही, नव पीढ़ी को आशावादी बनानेवाली, प्रेरणादायी और जीवनोन्मुख भी हैं|


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