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Genre
Print Length
163 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
8188266159, 9789386001788
Weight
305 Gram
अरुंधती, चैतन्य होकर मेरी बात सुनो! अपने कर्तव्य को तुमने अपनी संपूर्ण जिजीविषा दी! इस सृष्टि की रचना में सर्वत्र तुम-हीं-तुम हो! काल की गति में तुम्हारे श्वासों का खिंचाव बस इतना भर ही था | जाओ अरुंधती, शांतिपूर्वक देह का त्याग करो! देखो, तुम्हारी उत्तराधिकारिणी यह वैष्णवी तुम्हारे समक्ष है | इसे साथ लेकर मैं यहीं रहूँगा! अपने प्राणों की शेष ऊष्मा तुम्हारी इन मानस- संतानों को देकर संभवत : मेरा प्रायाश्चित्त पूरा हो सके!” आँसुओं की झिलमिलाहट के आर- पार निष्पलक देखती रही थी वैष्णवी- बड़े काकाजी का वह गैरिक वसन- त्याग, इकहरे सफेद पहिरावे में श्राद्ध से संबंधित सारे अनुष्ठानों का नीरव निर्वाह |.. और तेरहवीं की गोधूलि वेला में विद्या निकेतन की बालिकाओं के लिए बड़े काकाजी का वह वात्सल्य पगा संबोधन- '' आपकी माताजी का स्थानापन्न तो नहीं हो सकता मैं : पर आपकी सेवा में ही मेरे जीवन का अंतिम परितोष सन्निहित है | '' आप ऊर्विजाएँ हैं! आपकी अरुंधती माँ तपकर निखरने का मूल मंत्र पहले ही मे- लोगों को सौंप चुकी हैं | आज से आपकी रक्षा का भार मैं लेता हूँ और अपने संन्यस्त जीवन का परित्याग करता हुआ एक बार फिर से गृही होने की घोषणा करता हूँ! ''
-इसी संग्रह से प्रख्यात कथाकार ऋता शुक्ल की कहानियों में समाज का संत्रास आँखों देखी घटना के रूप में उभरता है | तभी तो उनकी कहनियाँ संस्मरण, रेखाचित्र और कहानी का मिला-जुला अनूठा आनंद प्रदान करती है उनकी हृदयपर्शी एवं मार्मिक कहानियों का संकलन प्रस्तुत है- ' कायांतरण ' के रूप में|
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