$12.06
Genre
Print Length
192 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2013
ISBN
9788173157141
Weight
360 Gram
उस दिन उनके घर में हर्षोल्लास का माहौल था| उन्होंने गत वर्ष जो मकान खरीदा था, उसको तोड़ने पर दीवारों में से अपार अनर्जित संपदा उन्हें प्राप्त हुई थी| उस मकान का पूर्वकालिक स्वामी, कभी जिसके ऐश्वर्य और विलास की सीमा नहीं थी, सरकारी अस्तपाल के छोटे से कमरे में पड़ा था| वह अभी-अभी मृत्यु के मुँह से लौटा था| सभी मित्र-परिजन, यहाँ तक कि उसके पुत्र भी, उसे छोड़ गए थे| केवल उसकी पत्नी किसी स्कूल में पढ़ाकर किसी तरह उसकी देखभाल कर रही थी| घर लौटते समय उसने अपार संपदा पाए जाने का यह समाचार सुना और पति से कहा, “दीवारों में संपदा छिपी है-काश, यह बात हम जान पाते!” पति ने धीरे से कहा, “अच्छा हुआ, जो मैं न जान पाया| मैं अब जान पाया हूँ कि मैंने मकान बेचकर सुख पाया है| उसने मकान खरीदकर सुख खोया है| पसीना बहाकर जो तुम कमाकर लाती हो, उसी ने मुझे जीवन दिया है| इससे बड़ा ऐश्वर्य कुछ हो सकता है, मैं नहीं जानता|”
मंद-मंद मुसकराते हुए पत्नी ने पति की आँखों में झाँका और उनका माथा सहलाते हुए प्यार भरे स्वर में कहा, “मैं यही सुनना चाहती थी|”
-इसी पुस्तक से
मसिजीवी रचनाकार विष्णु प्रभाकरजी ने कहानियाँ, उपन्यास, नाटक आदि ही नहीं लिखे, बल्कि विपुल मात्रा में लघुकथाएँ भी लिखी हैं| ‘देखन में छोटी लगें, घाव करें गंभीर’ को चरितार्थ करनेवाली ये लघु कथाएँ मानवीय संवेदनाओं को स्पर्श करती हैं और रोचक, मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद हैं|
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