$12.06
Genre
Print Length
199 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2016
ISBN
8188266574
Weight
360 Gram
“टिकट कब से जनाना-मर्दाना होने लगा, बाबू?” “मूर्ख, नित्य नियम बदलता है और बदलनेवाले होते हैं मंत्री| दूरदर्शन पर प्रचार हो गया, सभी अंग्रेजी अखबारों में छप गया और इनको मालूम ही नहीं है|” “तब क्या होगा?” “पैसे निकालो|” “कितना?” “पाँच सवारी के एक सौ पच्चीस रुपए| यों रसीद लोगे तो एक हजार लगेगा|” “एक हजार! तब छोड़िए रसीद| उसको लेकर चाटना है क्या?” गाँठ खुली, गिन-गिनकर रुपए दिए गए| “और देखो, किसी को कहना नहीं| गरीब समझकर तुम पर हमने दया की है|” बेचारे टिकट बाबू के आदेश पर अब प्लेटफॉर्म से निकलने के लिए पुल पर चढ़े| सिपाही पीछे लग गया| “ऐ रुको, मर्दाना टिकट लेता नहीं है और हम लोगों को परेशान करता है|” उनमें से सबसे बुद्धिमान् बूढ़े ने किंचित् ऊँचे स्वर में कहा, “दारोगाजी, बाबू को सब दे दिया है|” दारोगा संबोधन ने सिपाही के हाथों को मूँछों पर पहुँचा दिया, “जनाना टिकट के बदले दंड मिलता है, जानते हो?” “हाँ दारोगाजी, लेकिन हम तो जमा दे चुके हैं|” जेब से हथकड़ी निकाल लोगों को दिखाते हुए सिपाही ने कहा, “अरे, हथकड़ी हम लगाते हैं या वह बाबू?” “आप!” “तब मर्दाना टिकट के लिए पचास निकालो|” और पुन: गाँठ अंतिम बार खुली| -इसी पुस्तक से
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