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Gandhari Ki Atmakatha (गांधारी की आत्मकथा)

Price: $ 30.00

Condition: New

Isbn: 817315354X

Publisher: Prabhat Prakashan

Binding: Hardcover

Language: Hindi

Genre: Novels and Short Stories,Memoir and Biography,

Publishing Date / Year: 2011

No of Pages: 300

Weight: 530 Gram

Total Price: $ 30.00

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गांधारी, अपने पुत्रों को समझाओ | द्वारकाधीश की माँग बहुत कम है | अब पाँच गाँव से और कम क्या हो सकता है?'' '' अब वे मेरे समझाने की सीमा में नहीं रहे | जब पानी सिर से ऊपर बहने लगा तब आप उसे बाँधने के लिए कहते हैं! आपसे अनेक अवसरों पर ओंर अनेक बार मैंने कहा है कि यह दुर्योधन बिना लगाम का घोड़ा हो गया है, उसपर नियंत्रण करिए; पर उस समय आपने बिलकुल ध्यान ही नहीं दिया | आज वह बात इस हद तक बढ़ गई कि यह घोड़ा जिस रथ में जुता है उसीको उलट देना चाहता है, तब आप मुझसे कहते हैं कि घोड़े की लगाम कसो! '' आपके पुत्रों ने पांडवों पर क्या-क्या विपत्ति नहीं ढाई! हर बार उन्हें समाप्‍त करने का प्रयत्‍न करते रहे | मैं हर बार तिलमिलाती रही और हर बार आपका मौन उन्हें प्रोत्साहन देता रहा | किसलिए? इस सिंहासन के लिए, जो न किसीका हुआ है और न किसीका होगा? इस धरती के लिए, जो आज तक न किसीके साथ गई है और न जाएगी? इस राजसी वैभव के लिए, जिसने हमें अहंकार के अतिरिक्‍त और कुछ नहीं दिया है ?'. .इसे आप अच्छी तरह जान लीजिए कि यदि कोई वस्तु हमारे साथ अंत तक रहेगी और इस संसार को छोड़ देने के बाद भी हमारे साथ जाएगी तो वह होगा हमारा धर्म, हमारा कर्म |.. '' आपने उसीकी उपेक्षा की | मोह-माया, ममता, पुत्र-प्रेम और लोभ से ही घिरे रहे | इसी लोभ ने आपके पुत्रों को पांडवों के प्रति ईर्ष्यालु बनाया | अब जो कुछ हो रहा है, वह उसी ईर्ष्या का शिशु है | अब आप ही उसे अपने गोद में खिलाइए | मैं उसका जिम्मा नहीं लेती | मैंने कई बार कहा है कि हमारे दुर्भाग्य ने हमें संतति के रूप में नागपुत्र दिए हैं | वे जब भी उगलेंगे, विष ही उगलेंगे | इसलिए नागधर्म के अनुसार समय रहते हुए उनका त्याग कर दीजिए | '' -इसी पुस्तक में