$10.52
Genre
Print Length
160 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
9789380186344
Weight
320 Gram
‘कृष्ण एक रहस्य’ उपन्यास लिखे जाने के बाद मुझे लगा कि अभी कृष्ण मेरे माध्यम से अपना एक अन्य गीत गाना चाहते हैं| गीता प्रभु का गाया गीत ही है और उस गीत की एक रहस्यमयी कड़ी ‘मन्मना भव मद्भक्तो माद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण:||
को मुझे अपनी बाँस की पोली पोंगरी बनाकर नए अंदाज में गाना चाहते हैं| वे युद्ध में संशयग्रस्त अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन! तू मुझमें मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करनेवाला हो, मुझको प्रणाम कर| इस प्रकार आत्मा को मुझमें नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा| वास्तव में अर्जुन इस अवस्था को बहुत पहले ही प्राप्त हो गया था| वह कब कृष्ण के प्रति अपनी इस समर्पित भावदशा को उपलब्ध हुआ, इसका खुलासा करने के लिए उस विराट् ने मुझसे ‘मुझे कृष्ण चाहिए’ नामक उपन्यास लिखवाया| इस उपन्यास की कथा का सार यह है कि जीवन में प्राय: परमात्मा हमारे सम्मुख आकर खड़ा हो जाता है और कहता है कि तुम्हारे सामने दो चीजें हैं : पहला तो है संसार, जिसमें तुम्हें धन, पद, प्रतिष्ठा इत्यादि सभी लौकिक सुख मिलेगा और दूसरा है परमात्मा, जहाँ तुमसे सांसारिक सुख छीन लिये जाएँगे और तुम्हारे पास जो है, वह भी ले लिया जाएगा| चुनाव तुम्हारे हाथों में है| तुम जो चाहोगे, मैं तुम्हें वही दूँगा| ऐसे में जो परमात्मा को चुनता है, संसार की दृष्टि में वह असफल कहलाता है| संसार उसे परमात्मा को चुनने के लिए क्षमा नहीं करता|
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