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Draupadi (द्रौपदी)

Price: $ 13.53

Condition: New

Isbn: 9789350485460

Publisher: Prabhat Prakashan

Binding: Hardcover

Language: Hindi

Genre: Novels and Short Stories,Memoir and Biography,

Publishing Date / Year: 2014

No of Pages: 232

Weight: 390 Gram

Total Price: $ 13.53

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Subhash Jain, Paramit Kaur Parharभरे राजदरबार में द्रौपदी ने कुरुवंश के अनेक बड़े-बुजुर्गों और दुर्योधन से सवाल पूछा था, ‘‘मेरे पति पहले मुझे हारे थे कि अपने आपको?’’ तब उसका अपमान किया गया था| उसी द्रौपदी ने वर्षों तक निरंतर बिना कोई प्रश्न पूछे पाँच पतियों की सेवा की थी, इस बारे में कहीं किसी ने कोई उल्लेख तक नहीं किया है| समाज की यह संपूर्ण व्यवस्था स्त्री-विरोधी क्यों है? स्त्री का स्वभाव एक ही पुरुष के साथ बँधकर रहना और सुरक्षा की अपेक्षा करना है, परंतु वह सहन कर सके, उससे अधिक अत्याचार अगर उस पर किए जाएँ तो उसमें से जागा विद्रोह सर्वनाश करता है| स्त्री का विद्रोह समाज को बदलता है, बदलने के लिए मजबूर करता है| जिस प्रकार बीज को उगाने के लिए धरती में दबाना पड़ता है, उसी प्रकार दबाई हुई, कुचली हुई स्त्री जमीन फोड़कर अंकुर की तरह फूटती है, विकसित होती है और विशालकाय वृक्ष बन जाती है, जबकि पुरुष मिट्टी की तरह वहीं-का-वहीं रह जाता है| प्रस्तुत पुस्तक में द्रौपदी के रूप में स्त्रियों की पीड़ा, उनकी मनोव्यथा, उनके सुख अथवा उनकी समझदारी की कथा उनकी जुबानी ही लिखी गई है| पर यह ‘द्रौपदी’ वर्तमान की है, ‘आज’ की है| अभी भी जी रही है-शायद हर स्त्री में! स्त्री-विषयक समस्याओं, विसंगतियों एवं विद्रूपताओं को विश्लेषित करती एक पठनीय कृति|