$10.00
Genre
Print Length
178 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
9788173153501/8173153507
Weight
305 Gram
श्रीमती सुधा मूर्ति जी कन्नड़ भाषा की लोकप्रिय और प्रतिष्ठित लेखिका हैं | हिंदी में प्रकाशित आपका पहला उपन्यास ' महाश्वेता ' काफी लोकप्रिय सिद्ध हुआ है | दूसरा उपन्यास ' डॉलर बहू ' भी इसी प्रकार हिंदी का कंठाभरण बनेगा, ऐसी आशा है |
शामण्णा जी शिक्षक हैं, जो साधारण परिवार के हैं | गौरम्मा उनकी धर्मप्राण धर्मपत्नी हैं | इनके दो पुत्र हुए-चंद्रशेखर और गिरीश | एक पुत्री भी है सुरभि | चंद्रशेखर को विनुता से प्रेम हो गया, पर उसे अमेरिका जाना पड़ा | इसी बीच छोटे भाई गिरीश से विनुता का विवाह हो जाता है | चंद्रशेखर का विवाह धनाढ्य घर की बेटी जमुना से हुआ | वे दोनों अमेरिका में ही रहने लगे | जमुना को डॉलर से प्रेम था | गौरम्मा भी सर्वगुण- संपन्न विनुता की अपेक्षा जमुना को डॉलर के कारण अधिक चाहती थी |
फिर गौरम्मा अपने बेटे और बहू के पास अमेरिका चली जाती है | बहुत दिनों तक वहाँ रहने पर गौरम्मा को अपनी डॉलर बहू और डॉलर-प्रेम से नफरत हो जाती है और वह भारत लौट आती है | अब वह विनुता को महत्त्व देना चाहती है, पर गिरीश और विनुता, दोनों घर छोड़कर अलग शहर में रहने लगे थे | इस प्रकार गौरम्मा के लिए यह कहावत चरितार्थ होती है-' माया मिली, न राम ' |
भारत लौटकर गौरम्मा कहती है, ' मुझे न वह स्वर्ग चाहिए न वह सुख! हमारा वतन सुंदर है; हमारा गाँव है अच्छा !'. .मुझे तो विनुता की याद सता रही है | '
इस उपन्यास में भारतीय अस्मिता और स्वाभिमान का पुनरुत्थान है | अमेरिका और डॉलर के चाकचिक्य से निभ्रांति इस उपन्यास का केंद्रीय बिंदु है | चरित्रांकण की मार्मिकता और शिल्प का सौष्ठव इस उपन्यास के अतिरिक्त आकर्षण हैं |
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