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Genre
Print Length
160 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
9789381063125
Weight
300 Gram
सगुण भक्ति-धारा के कृष्ण-भक्तों में मीराबाई का श्रेष्ठ स्थान है| वे श्रीकृष्ण को ईश्वर-तुल्य पूज्य ही नहीं, वरन् अपने पति-तुल्य मानती थीं| कहते हैं कि उन्होंने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण का वरण कर लिया था|
माता-पिता ने यद्यपि उनका लौकिक विवाह भी किया, लेकिन उन्होंने पारलौकिक प्रेम को प्रश्रय दिया तथा पति का घर-बार त्यागकर जोगन बन गईं और गली-गली अपने इष्ट, अपने आराध्य, अपने वर श्रीकृष्ण को ढूँढ़ने लगीं| उन्होंने वृंदावन की गली-गली, घर-घर, बाग-बाग और पत्तों-पत्तों में गिरधर गोपाल को ढूँढ़ा, अंततः जब वे नहीं मिले तो द्वारिका चली गईं|
मीराबाई ने अनेक लोकप्रिय पदों की रचना की| हालाँकि काव्य-रचना उनका उद्देश्य नहीं था| लेकिन अपने आराध्य के प्रति निकले उनके शब्द ही भजन बन गए और लोगों की जुबान पर चढ़ गए| उनके पद राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में बहुत लोकप्रिय हुए और आज भी रेडियो एवं टेलीविजन पर बजते सुने जा सकते हैं|
प्रेम-भक्ति में मग्न होकर गाए उनके पद-गीत यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं| प्रस्तुत पुस्तक में उनके भक्ति-रस में रचे-बसे पदों को संकलित किया गया है| आशा है, सुधी पाठक इस पुस्तक के माध्यम से मीराबाई के भक्ति-सागर में गोते लगाएँगे|
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