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Genre
Print Length
208 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2012
ISBN
8173151318
Weight
325 Gram
‘तो बतलाओ, तुम अचल, से कभी प्रेम करती थीं?’
‘कभी नहीं | और तुम? ’
‘हाँ करती थी | एक युग-सा हो गया | परंतु सुधाकर को और भी अधिक चाहा |’
‘अचल के यहाँ या कहीं अकेली जाने पर सुधाकर बाबू कोई रोक-टोक तो नहीं करते? ’
निशा ने पूछा |
कुंती ने जरा भन्नाकर उत्तर दिया, ‘रोक-टोक कैसे करेंगे? मैं कोई चोरी तो करती नहीं | मान लो मैं अचल को चाहने लगूँ तो उनका मार्ग अलग, मेरा अलग; परंतु जब तक वे अपने शरीर को और व अपने शरीर को पवित्र बनाए रहें तब तक किसी के मन से किसी को क्या वास्ता? ’
‘ शायद तुम्हारा कहना ठीक हो; परंतु हिंदू धर्म में तन और मन के बीच में कोई अंतर नहीं रखा गया है |’
‘ केवल स्त्री के लिए | पुरुष के लिए सब धन बाईस पंसेरी | स्त्रियों ने शास्त्रों कोलिखा होता तो उनमें कुछ और मिलता | ’
‘ सो तो ठीक है, कुंती | शायद पुरुषों की अपेक्षा अपना समाज स्त्रियों पर अधिक टिका हुआ है | पुरुष चाहे इस बात को माने और चाहे न माने, पर इन्हीं स्त्रियों को बहुत-से अपना शृंगार समझते हैं और अनेकों पैर की जूती | मुझको दोनों कल्पनाओं से घोर घृणा है ’
नारी स्वतंत्र होनी ही चाहिए | पर स्वतंत्रता और उच्छंखलता के भेद को भी समझा जाना चाहिए | आयातित आचरण से नारी-पुरुष समान हुए या नहीं-यह आज के लोग अच्छी तरह परिचित हैं | परंतु इस भविष्यत् को वर्माजी की दृष्टि ने पहले ही परख लिया था | वर्माजी की श्रेष्ठ कृतियों में से एक है ‘अचल मेरा कोई... ’
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