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Genre
Print Length
228 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2011
ISBN
8173152489
Weight
375 Gram
नवलबिहारी ने वहीं खड़े-खड़े कहा, ' इन पाजी लौंडों की यह हिम्मत! धर्म को गारत किया, अब अपने बडे-बूढ़ों के अपमान पर कमर कसी है | '
पंचपात्र छीनने के लिए नवलबिहारी मंगल के पास ऐसे स्थान पर आए जहाँ सोमवती या फूलरानी से उनकी मुठभेड़ नहीं हो सकती थी | मंगल से बोले, ' अपना नाश किया था, सो उसका तुमको यह प्रायश्चित्त करना पड़ा; अब सारे समाज का नाश करके कौन सा प्रायश्चित्त करोगे?'
मंगल ने कहा, ‘तुम्हारे सरीखे संसार डुबोइयों की अकल अगर मैंने ठीक कर दी तो हमारे समाज का बेड़ा पार है | '
एक युवक ने बड़ी बेतकल्लुफी के साथ कहा. ' पंडितजी, क्यों चाँय-चाँय मचाए हुए हो? भाई के हाथ का चरणामृत बँट चुका, अब जरा अपनी बहिन के हाथ का भी पी लेने दो | '
नवलबिहारी की आँखों में खून आ गया | उनकी सहज सरल मुसकराहट तो जान पड़ता था मानो दीर्घकाल से लुप्त हो गई हो | आकृति बहुत भयानक हो उठी |
लखपत ने उनको पकड़कर कहा, ' पंडितजी, यहाँ से चलिए | ये लोग बलवा करने के लिए आमादा हैं | मंदिर अपवित्र हो गया है | कल इसको शुद्ध करावेंगे |
' एक लड़का ठहाका मारकर बोला, ' वाह रे भैया खूसट!'
पं. नवलबिहारी आग उगलनेवाली दृष्टि से इन सब पूजकों की ओर देखते जाते थे और उनको लखपत समेत उनके दो-तीन इष्ट मित्र बाहर घसीटे लिये जाते थे |
-इसी पुस्तक से
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