$14.01
Print Length
268 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2009
ISBN
9788173155543
Weight
425 Gram
‘गुरुजी, आप इतना भ्रमण करते हैं| हर रोज नए गाँव, नए प्रदेश, नई भाषाएँ, नई राहें| आपको सबकुछ नया या अपरिचित जैसा नहीं लगता?’ ‘कभी नहीं; एक बार हिंदुस्थान को अपना समझ लिया तो सभी देशवासी अपने परिवार जैसे लगते हैं| आप भी एक बार मेरे साथ चलें-लेकिन आत्मीयता के साथ-तो देखेंगे कि आपको भी सारा देश अपने घर, अपने परिवार जैसा प्रतीत होगा|’ ‘गुरुजी, आप इतनी संघ शाखाओं में जाते हैं, प्रवास करते हैं| क्या आपको लगता है कि पचास वर्षों के पश्चात् संघ का कुछ भविष्य होगा?’ ‘अगले पचास वर्ष ही क्यों, पचास हजार वर्षों के पश्चात् भी संघ की आवश्यकता देश को रहेगी, क्योंकि संघ का कार्य व्यक्ति-निर्माण है| जिस वृक्ष की जड़ें अपनी मिट्टी से जुड़ जाती हैं, भूगर्भ तक जाती हैं, वह कभी नष्ट नहीं होता| दूर्वा कभी मरती नहीं, अवसर पाते ही लहलहाने लगती है| ‘संस्कृति व जीवन-मूल्यों पर आधारित, संस्कारों से निर्मित, साधना से अभिमंत्रित संघ अमर है और रहेगा| उसके द्वारा किया जा रहा राष्ट्र-कार्य दीर्घकाल तक चलनेवाला कार्य है|’ -इसी पुस्तक से रा.स्व. संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ‘गुरुजी’ का जीवन त्यागमय व तपस्यामय था| वे प्रखर मेधा-शक्तिवाले, अध्यात्म-ज्ञानी एवं प्रभावशाली वक्ता थे| आधुनिक काल के वे एक असाधारण महापुरुष थे| प्रस्तुत है-आदर्शों, महानताओं एवं प्रेरणाओं से युक्त जीवन पर आधारित एक कालजयी उपन्यास|
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