$9.00
Genre
Print Length
219 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2009
ISBN
8188266345
Weight
370 Gram
सन् 1984 में घटी भोपाल गैस त्रासदी को आज कौन नहीं जानता| भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकली जहरीली गैस ने अर्धरात्रि में सो रहे हजारों लोगों की जान ले ली थी| उस हत्यारी गैस ने सैकड़ों मासूम बच्चों, स्त्रियों और निर्दोष युवक-वृद्धों को सदैव के लिए मौत की नींद सुला दिया था| उस दुर्घटना में मानव ही नहीं, हजारों पशुओं-भैंसों, गायों, बकरियों, कुत्तों एवं अन्य जीवों-को भी अपने प्राणों से हाथ धोने पड़े थे|
जब वह त्रासदी हुई, मानवता चार-चार आँसू रो रही थी| उस समय आम लोगों, अनेक सामाजिक संस्थाओं एवं स्वयंसेवी संगठनों ने भी राहत-कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान दिया था| यही मानवता का तकाजा भी था| किंतु वहीं दूसरी ओर कुछ प्रभावशाली अधिकारियों व डॉक्टरों के नाकारापन और गुनहगारों को बचाने के एक सूत्रीय कार्यक्रम एवं स्वार्थी तत्त्वों ने कर्मठ व ईमानदार प्रशासनिक अधिकारियों, डॉक्टरों तथा सरकारी अमले की मानवीयता व कर्तव्यपरायणता तथा गैस-पीड़ितों को झिंझोड़कर रख दिया| उस समय यूनियन कार्बाइड कारखाने के कर्ता-धर्ताओं से लेकर इन सरकारी आला अफसरों ने पीड़ित जनों के प्रति जो बेरुखी दिखाई, उस घटना के अपराधियों को बचाने के लिए जो तिकड़में भिड़ाईं-वह अपने आप में अलग ही दास्तान है|
आज बहुत से लोग भोपाल गैस त्रासदी के सच को नहीं जानते| इस पुस्तक में उस कड़वे सच से रू-बरू कराया गया है तथा अनेक अजाने रहस्यों का उद्घाटन किया गया है| विश्वास है, प्रस्तुत पुस्तक को पढ़कर पाठकगण एक बहुत बड़ी सच्चाई से अवगत होंगे|
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