$12.00
Genre
Print Length
224 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
8173151598
Weight
340 Gram
राजा ने यथाशक्ति नम्रता के साथ कहा-' हम कश्मीर नरेश, भारत सम्राट् ललितादित्य हैं | तुक्खर देश की ओर जा रहे हैं | '
साधु के मुख पर आश्चर्य की एक रेखा तक नहीं खिंची | उसी समता, तटस्थता के साथ बोला-' जानते हो, पूर्वजन्म में क्या थे?'
राजा के भीतर विनय की बाढ़-सी आ गई | नम्रता के साथ उत्तर दिया-' मैं नहीं जानता, जान ही नहीं सकता | आप योगी हैं, अवश्य हैं | आप ही बतलाइए |'
साधु ने कुछ क्षण ध्यान लगाने के बाद कहा-' तुम पूर्वजन्म में एक समृद्ध गृहस्थ के नौकर थे, जो खेती कराता था | तुम उसका हल जोतते थे | वह गाँव श्रीनगर से बहुत दूर है जहाँ तुम उस भूमि-स्वामी के खेतों में हल जोतकर अपना जीवन चलाते थे | जिन दिनों तुम हल चलाते, भूमि-स्वामी तुम्हारे लिए खेत पर रोटी औंर पानी भेजता था | एक दिन गरमी की ऋतु में बड़े-बड़े बैलों का भारी हल चलाते-चलाते थक गए | दिन- भर हल चलाया, परंतु न रोटी आई और न पानी मिला | आसपास कहीं भी पानी था ही नहीं | भूख और प्यास के मारे तुम्हारा गला सूख गया | तड़प रहे थे कि थोड़ी- सी दूरी पर रोटी-पानी लानेवाला दिखलाई पड़ा | प्रसन्न हो गए | वह एक मोटी रोटी लाया था और एक छोटा-सा घड़ा पानी का | तुमने खाने के लिए हाथ-मुँह धोया ही था कि कहीं से एक ब्राह्मण हाँफता- हाँफता तुम्हारे पास आकर बोला-' मत खाओ, मैं भूखों मरा जा रहा हूँ ' |
-इसी पुस्तक से
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