Devgarh Ki Muskan (देवग्रह की मुस्कान)

By Vrindavan Lal Verma (वृन्दावनलाल वर्मा)

Devgarh Ki Muskan (देवग्रह की मुस्कान)

By Vrindavan Lal Verma (वृन्दावनलाल वर्मा)

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Specifications

Print Length

270 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2011

ISBN

8173151911

Weight

440 Gram

Description

बुद्धा हाथ जोड़कर बोला, ' यह मेरी बहिन तिनकी हें और यह छोटा भाई मिट्ठू है | हम तीनों पहले मंदिर में फूल चढ़ाने के लिए गए थे, क्योंकि भगवान् बहुत बड़े हैं; परंतु पुजारियों ने नाहीं कर दी.. | '
' पुजारियों ने फूल चढ़ाने से नाहीं कर दी! कौन से मंदिरों के पुजारियों ने?' राजा ने आश्‍चर्य के साथ प्रश्‍न किया |
तिनकी बोल पड़ी, ' विष्णु भगवान् के मदिरवालों ने, सबने- '
बुद्धा ने रोका, ' ठहर जा! बीच में मत बोल | ' और राजा को उत्तर दिया, ' महाराज, नगर के बड़े मंदिरों पर हम लोग गए | भीतर कहीं नहीं घुस पाए | '
राजा सोचने लगे-सहरियों के छुए ये फूल भी अपवित्र माने गए! हम इस दुराग्रह को मिटाकर रहेंगे | बाण से कैसे भी शत्रु को धराशायी कर सकते हैं तो क्या इस कुरीति को नहीं मिटा सकेंगे?. .बोले, ' हम विष्णु मंदिर में इन फूलों को चढ़ाने के लिए चलेंगे | ये तीनों साथ रहेंगे | ' उन्होंने उन सहरियो की ओर उँगली से संकेत किया | अनेक जनों को खटका-राजा क्या धर्माचार पर भी बाण चलाएँगे? राजा, रानियों और राजकुमारों ने हाथ-पैर धोकर सहरियों से फूल लिये और मंदिर के भीतर जाकर मूर्ति पर फूल चढ़ाए | राजा ने सहरियों को अंदर बुलाया | पुजारियों ने हाथ जोड़कर निषेध किया | राजा ने कहा, ' इनके छुए फूल भगवान् पर चढ़ा दिए तो ये क्यों नहीं भीतर आ सकते?'
- इसी उपन्यास से
महोबे के चंदेले राजाओं की तलवार का पानी तो इतिहास-प्रसिद्ध है ही, उनके द्वारा किए गए जनहित कार्यों की गाथा आज भी वहाँ के खंडहर कह रहे हैं | इसी इतिहास- प्रसिद्ध चंदेल वंश में पैदा हुए राजा विजयपालदेव की शस्त्र तथा शास्त्र में समान गति थी | उनके लोकहितकारी कार्यों की गाथा को आज भी देवगढ़ का किला अपनी मुसकानों में बिखेर रहा है |


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