Dehari Ke Paar (देहरी के पार)

By Viveki Rai (विवेकी राय)

Dehari Ke Paar (देहरी के पार)

By Viveki Rai (विवेकी राय)

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Specifications

Print Length

203 pages

Language

Hindi

Publisher

Prabhat Prakashan

Publication date

1 January 2011

ISBN

8188267090

Weight

365 Gram

Description

‘‘अच्छा, एक बात बताओ, चोट मात्र कंधे पर है और साधारण ही है तो इतने लोग यहाँ क्यों इकट्ठे हैं?’’ ‘‘मेला है न! जो उधर से लौटता है, यहाँ हाल-चाल पूछने आ जाता है| गाँव में बहुत हिले-मिले रहते हैं ज्ञानेश्‍वर बाबू, बहुत लोकप्रिय हैं| जो सुनता है चोट की खबर, दु:खी होता है!...अब आप लोग देर न करें| दिन शेष नहीं है|’’
‘‘अच्छा, बस एक और शंका है, बच्चे! ये बाबा इतने अधीर होकर तथा फफक-फफककर लगातार रो क्यों रहे हैं?’’
जब तक वे वहाँ पहुँचे, एक भारी भीड़ पहुँच गई| एक ऐसी भीड़, जिसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही हैं| उत्तर जानते हुए भी शोकाकुल के चेहरे पर वही प्रश्‍न-कैसे क्या हुआ? शिवरात्रि के अवसर पर घटित इस अशिव दिन ने पूरे गाँव-जवार को कँपा दिया| शोक-त्रास और अशुभ-अमंगल चरम सीमा पर पहुँचकर लोगों को इस प्रकार भीतर से मथने लगा कि उसकी अभिव्यक्‍त‌ि गहरी खामोशी में होने लगी| अधिक देर कहाँ लगी, थोड़ी देर में ही सारी स्थिति सर्वत्र साफ हो गई| एक अति छोटे क्षण की छोटी सी चूक, जो एक घटना के रूप में परिवर्तित हुई और फिर एक दुर्घटना के रूप में उसकी परिणति ऐसी हो गई कि उसका जिक्र करते भी लोग काँप जाते हैं| उसका नाम मुँह से नहीं कढ़ता| जितना बन पड़ता है, लोग उसे छिपाते हैं|
मैं महसूस करता-ये कंधे बहुत मजबूत हैं; हम सबको, पूरे परिवार को सुरक्षित जीवन-यात्रा के लिए आश्‍वस्त करते हैं| एक गर्व भीतर कहीं सिर उठाकर मचलता है-यह मेरा पुत्र नहीं, मित्र है, अभिभावक है और पिता के अभाव की पूर्ति करता है|...मैंने अपने पिता को तो नहीं देखा, वे मेरे जन्म के डेढ़-दो मास पहले ही परलोकगामी हो गए, किंतु इस पुत्र को देख रहा हूँ, ऐसे ही वे रहे होंगे|...हाँ, तू ऐसा ही है कि मैं निश्‍च‌ित हूँ|
-इसी उपन्यास से


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