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Genre
Print Length
239 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2010
ISBN
8185829942
Weight
280 Gram
...अमृतसर के पास मजदूर बस्ती छहरता | मजदूर खुशी में घरों से निकले हैं कि लड़ाई बंद हो गई | साढ़े चार बजे लोग यह सुनना चाहते हैं कि अब क्या कह रहे हैं जनरल साहब | ठीक उसी समय एक सैबरजेट नीचे उड़ान भरते हुए झपटता आता है और सर्वनाश की तरह इस प्रकार घहरा उठता है कि बाजार ईंट-पत्थरों की ढेरी के रूप में परिवर्तित हो जाता है | आदमियों के स्थान पर मांस के लोथड़े और शरीर के टुकड़े दिखाई पड़ने लगे | टेलीफोन और बिजली के खंभों पर मांस के टुकड़े चिपके हुए मिले | उस समय इतिहास ने हाथ उठाकर ऐलान किया था. कुछ स्थितियाँ तो बहुत विचित्र लग रही थीं कि उस पाकिस्तानी बुनियादी जनतंत्र के नाम पर हजार-हजार पौंड के और साढ़े बारह- बारह मन के बम झोंके जा रहे थे, सो भी कहाँ-कहाँ? लहलहाती फसलों पर, आबादी पर, अस्पताल पर, घायल मरीजों पर, बीमार और कराहते औरतों और बच्चों पर, मंदिर- धर्मशालाओं पर, चर्च और गुरुद्वारों पर | भला वैसे पवित्रात्मा देशभक्त शहीद को भूत-प्रेत या जिन होना चाहिए? लेकिन नहीं, भीतर एक कामना एक वासना, एक उद्देश्य की आग दहक रही थी, जिसे लेकर वह जिन बन गया और पूर्ति के लिए सुयोग्य पात्र चुन लिया | सचमुच, भारत माता की खोज का उद्देश्य कितना महान् है! इस बेहाल-हाल में बेचारा जगदीश उस उद्देश्य को उसीकी भाषा में दुहरा रहा है | वे पैदल-पैदल साइकिल ढिमलाते धीरे- धीरे आगे बड़े | कुछ आगे जाकर फिर छवर के किनारे धूल पर भारत का नक्शा बना प्रतीत हुआ | इसमें कच्छ की खाड़ी और बिलोचिस्तानवाली लाइन सुरक्षित थी | शेष आने-जानेवाले पैदल आदमी के पैरों अथवा साइकिल आदि से खनकर हंडभंड हो गया था | बिलोचिस्तानवाली लाइन देखकर मास्टर साहब के होंठों पर मुसकान फूट गई | -इसी उपन्यास से
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