$7.78
Genre
Print Length
144 pages
Language
Hindi
Publisher
Prabhat Prakashan
Publication date
1 January 2013
ISBN
9789382898399
Weight
300 Gram
यह कलियुग है| मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है और दानवीय लीला का विकास| दुर्गुणों का बोलबाला है और सद्गुणों का लोप| चोरी, डकैती, हत्या आदि से मनुष्य संत्रस्त है| अनेक सामाजिक कुरीतियों-बाल-विवाह, विधवा-समस्या, दहेज प्रथा, भ्रूण-हत्या, बड़ा परिवार आदि ने मानव-मूल्यों को नष्ट कर रखा है| नैतिकता से कोई संबंध शेष नहीं रह गया है| समलैंगिक विवाह के पक्ष में भी लोग खड़े हो रहे हैं| प्रस्तुत सामाजिक उपन्यास ‘हर हर गंगे’ उपर्युक्त समस्याओं पर विमर्श प्रस्तुत करने के साथ ही निष्कर्ष भी उपस्थित करता है|
पात्रों के बीच सामाजिक समस्याओं पर विचार-विनिमय का ताना-बाना उपन्यास के कथ्य को बुनने में सहायक रहा है| पौराणिक कहानियों ने जरी के रूप में इस बनावट में चमक उत्पन्न की है| इस उपन्यास में हर व्यक्ति के जीवन की कहानी कही गई है| इसके सभी पात्र काल्पनिक हैं और सामाजिक औपचारिकताओं से बँधे हुए हैं| पौराणिक कहानियों का बोध कराने और विविध सामाजिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने में यह कृति सहायक सिद्ध होगी| अत्यंत रोचक, मनोरंजक और प्रेरणाप्रद उपन्यास|
0
out of 5